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शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

बहू का कन्यादान: रिश्तों की नई मिसाल (कहानी); Bahu Ka Kanyadaan (Kahani) II SejalRaja II

“पापा… दादा… मम्मी… दादी…! आप सब मेरा कहा ध्यान से सुन लीजिए,” 

कमलेश की आवाज में कंपन था, मगर आँखों में किसी गहरी पीड़ा का भार।

“आज से शुचिता मेरी पत्नी नहीं… मेरी बहन कहलाएगी।”



सिर्फ 18 साल के कमलेश की इस घोषणा ने पूरे घर को जैसे ठिठका दिया।

एक पल में कमरे की हवा भारी हो गई। सभी एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे—कभी पापा दादा की ओर

देखते, कभी मम्मी दादी की ओर, और फिर सहमी हुई नजरों से कमलेश को।

शुचिता, जो बस एक साल पहले ही इस घर की बहू बनकर आई थी, अपने पति की बात सुनकर 

स्तब्ध रह गई। उसका दिल जैसे एकाएक धड़कना भूल गया। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि 

कमलेश ऐसा क्यों कह रहा है।

कमरे में फैली खामोशी में एक ही सवाल तैर रहा था—

आखिर कमलेश को हुआ क्या है?

कमलेश की घोषणा सुनकर घर में जैसे सन्नाटा पसर गया था। सभी के चेहरों पर उलझन और चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं। 

कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था, और कोई इस अजीबोगरीब बदलाव के पीछे का कारण जानना चाहता था।

पापा ने सबसे पहले मुँह खोला, लेकिन शब्द उनके गले में जैसे अटक गए थे।

"बेटा, आखिर हुआ क्या है? क्या… क्या बहू ने कुछ किया है?"

कमलेश के पापा की आवाज में घबराहट थी, जैसे वह खुद इस अनहोनी का कारण जानने के लिए बेताब थे। उनका मन एक अजीब उलझन में फंसा हुआ था।

मम्मी ने भी घबराए हुए स्वर में कहा, "हां, बेटा… जो कुछ भी हुआ, हमें खुलकर बताओ। लेकिन, ऐसा मत कहो कि—शुचिता तुम्हारी पत्नी नहीं, बहन है। भगवान के लिए, ऐसा मत कहो।"

उनकी आवाज में एक मां की चिंता थी, जो अपने बेटे के इस अजीब फैसले को समझने में नाकाम हो रही थी।

फिर दादी ने भी गहरी चिंता जताई, "बेटा, परिवार की इज्जत का ख्याल रखना। पास-पड़ोस वाले अगर ये सब जानेंगे, तो क्या कहेंगे? कुछ तो बोल, बेटा… आखिर तुमने ऐसा क्यों किया?"

दादी का डर था कि यह अचानक का फैसला पूरे परिवार की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े कर सकता था। उनकी आँखों में एक ठंडी और उदास चिंता थी, जैसे वह सब कुछ खो देने का डर महसूस कर रही थीं।

अंत में, दादा ने अपनी गंभीर आवाज में कहा, "बेटा, तुम्हें बताना तो पड़ेगा कि ऐसा तुमने क्यों किया? क्या हमारी बहू में कोई कमी है?"

दादा के शब्दों में नाराज़गी नहीं, बल्कि एक गहरी चिंता और दयालुता थी। उन्हें लगता था कि अगर कोई गलती हुई है, तो वह केवल परिवार का निजी मामला नहीं, बल्कि उनकी ज़िंदगी के फैसले पर भी असर डालने वाली बात हो सकती है।

सभी की आँखों में सवाल थे, लेकिन कोई जवाब देने वाला नहीं था। शुचिता, जो चुपचाप खड़ी थी, अब तक कुछ नहीं कह पाई थी। उसका मन भी उलझन में था। क्या कमलेश को सही में ऐसा महसूस हुआ था कि वह अपनी पत्नी को बहन मानने की घोषणा कर दे? क्या वह खुद  उस रिश्ते में किसी गहरे बदलाव को महसूस कर रहे थे?

सभी के चेहरों पर वही एक सवाल था—क्या ऐसा फैसला अचानक और बिना किसी वजह के लिया जा सकता है?

कमलेश ने अपनी इस घोषणा का कारण किसी को नहीं बताया।

परिवार वाले अभी उसकी इस बात के सदमे से उबरे भी नहीं थे कि एक दिन अचानक कमलेश बिना किसी को कुछ बताए घर छोड़कर चला गया।

इस तरह कमलेश ने अपने परिवार को दूसरा गहरा झटका दे दिया।

परिवार वालों ने कमलेश का एक-दो साल तक इंतज़ार किया।

कमलेश के इस व्यवहार से उसकी बेचारी पत्नी शुचिता का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था।

कभी वह अपनी किस्मत को कोसती, कभी अपने मां-बाप को, और कभी भगवान को।

शुचिता की उम्र ही क्या थी—सिर्फ 19 साल।

इतनी कम उम्र में उसे ऐसे कठिन और दर्दभरे दिन देखने पड़ रहे थे।

शुचिता भीतर से कितनी ही टूटी हुई क्यों न हो, पर उसने कभी अपने कर्तव्यों से मुँह नहीं मोड़ा।

आँखों में रोज़ नए आँसू उतर आते, लेकिन वह फिर भी पूरे मन से घर का हर काम करती रही— मानो उसके दुख ने उसके हाथों की रफ्तार को रोकना सीखा ही न हो।

उसका हाल देखने लायक नहीं था—चेहरे पर थकान, आँखों में खालीपन और मन में अनकही पीड़ा।

उसकी यह मासूम बेबसी अब सिर्फ उसके भीतर नहीं रह गई थी;

उसकी वेदना ने पूरे घर को अपनी गिरफ्त में ले लिया था।

ससुराल वाले भी उसके दुख से व्यथित थे।

हर कोई अपने-अपने तरीके से सोच रहा था कि आखिर इस कोमल-सी लड़की के लिए क्या किया जाए।

कैसे उसके दिल पर चढ़ी इस भारी छाया को हटाया जाए।

सब मिलकर जैसे किसी अदृश्य दर्द से लड़ रहे थे—

एक ऐसा दर्द, जो शुचिता की चुप्पी के पीछे चीख रहा था।

अब शुचिता के दर्द ने उसके ससुराल वालों को भीतर तक झकझोर दिया था।

वे खुद को ही गुनहगार समझने लगे—मानो शुचिता की हर आँसू की बूंद उनकी ही किसी कमी का परिणाम हो।

वे फिर से उसके चेहरे पर वही मासूम मुस्कान, वही खिलखिलाहट और वही उजाला देखना चाहते थे, जो कमलेश से शादी के बाद उसके चेहरे पर हमेशा बिखरा रहता था।

धीरे-धीरे, शुचिता उनके लिए बहू नहीं, बेटी बन गई।

उन्होंने तय किया कि इस बच्ची के टूटे हुए जीवन को फिर से सँवारा जाना चाहिए।

और इसी सोच के साथ वे उसके लिए एक सुयोग्य, सुशील और वफादार वर की तलाश करने लगे— कोई ऐसा जो उसके जीवन में फिर से भरोसा, सुरक्षा और खुशी लौटा सके।

अब शुचिता को ससुराल में वैसा ही लाड़-प्यार मिलने लगा,

जैसे कोई अपने घर की बेटी को देता है—

संभाल, स्नेह, और उसके टूटे दिल को धीरे-धीरे जोड़ने की अनगिनत छोटी-छोटी कोशिशें।

आख़िरकार वह दिन भी आ ही गया, जब शुचिता के लिए योग्य वर की तलाश पूरी हो गई। जिस घड़ी का इंतज़ार सब कर रहे थे, वह जैसे अचानक उनकी आंखों के सामने आ खड़ी हुई।

शुचिता के ससुराल वाले उसकी शादी की तैयारियाँ ठीक उसी प्यार और धूमधाम से करने लगे, जैसे कोई अपने घर की बेटी के लिए करता है।

शादी के कार्ड छपे, रिश्तेदारों और परिचितों को बांटे गए। घर को नए जोश और उत्साह से सजाया जाने लगा—दीवारें, आंगन, कमरों की हर कोठरी मानो एक नए आरंभ का स्वागत कर रही थी।

सजावट वालों से लेकर बैंड-बाजे वालों तक, सबको अपना-अपना काम सौंप दिया गया था।

शुचिता की मुस्कान लौट आए, उसकी आंखों में फिर से चमक दिखाई दे— इससे बढ़कर और किसी को कुछ नहीं चाहिए था।

इसलिए ससुराल वाले उसकी शादी में ज़रा-सी भी कमी नहीं रहने देना चाहते थे।

हर तैयारी में उनका प्यार, उनकी चिंता और उनकी भावनाओं का भार साफ झलक रहा था— मानो वे सच में अपनी ही बेटी को विदा करने की तैयारी में हों।

विदाई का समय करीब आ रहा था। घर के आंगन में हल्की-सी सरसराहट थी—फूलों की खुशबू, पंडाल की रोशनी और बैठे-बैठे रो पड़े चेहरे। शुचिता, जो कभी इस घर में बहू बनकर आई थी, अब इस घर से एक बेटी की तरह विदा हो रही थी।

दुल्हन बने हुए उसकी आँखों में मिश्रित भावनाएँ तैर रही थीं— एक ओर नया जीवन शुरू होने की खुशी, तो दूसरी ओर इस घर से बिछड़ने का दर्द, जिसने उसे टूटने से बचाया, संभाला, सहारा दिया।


ससुराल वाली महिलाएँ उसे गले लगाकर रो पड़ीं। उसकी सास ने हाथ पकड़कर कहा— “बेटी, खुश रहना… और हमेशा यह घर तुम्हारा ही रहेगा।” 

शुचिता की आँखें भर आईं।

कभी सोचा भी नहीं था कि जिन लोगों के साथ उसने इतने दर्द भरे दिन बिताए, वही लोग एक दिन उसे इतनी मोहब्बत से विदा करेंगे।

जब बारात आगे बढ़ने लगी, तो ससुर ने धीमी आवाज़ में कहा—

“शुचिता, आज हम तुम्हें बेटी मानकर विदा कर रहे हैं।

जैसे खुशी चाहिए, वैसे ही आशीर्वाद भी… बस तू मुस्कुराती रहना।”

उनके शब्द सुनकर वहाँ मौजूद हर व्यक्ति भावुक हो गया।

शुचिता के चरण छूकर आशीर्वाद देने वाली महिलाएँ भी फुसफुसाकर कह रही थीं—

“अरे, आज यह लड़की नहीं जा रही… यह घर का एक हिस्सा विदा हो रहा है।”

गाड़ी के दरवाज़े बंद होने लगे।

फूल बरसाए गए।

सबकी आँखों में आँसू और दिल में दुआ थी।


और फिर, गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ गई—

मानो शुचिता के जीवन का एक अध्याय बंद हुआ हो

और एक नया अध्याय शांत, सम्मान और प्रेम के साथ शुरू हुआ हो।


शुचिता का नया जीवन

नए घर की दहलीज़ पर कदम रखते हुए शुचिता के मन में एक डर भी था और उम्मीद भी।

जैसे कोई घायल परिंदा दुबारा उड़ना तो चाहता है, लेकिन पहली ही उड़ान में टूट जाने का डर उसे घेर लेता है।

लेकिन जैसे ही शुचिता अंदर पहुँची, उसके नए ससुराल वालों ने

प्यार, आदर और मुस्कान से उसका स्वागत किया—

मानो वे उसे पहले से ही अपने घर का हिस्सा मानते हों।

💛 नया पति, नई समझ, नई शुरुआत

जिस वर से उसकी शादी हुई थी,

वह शांत स्वभाव का, विनम्र और बेहद समझदार व्यक्ति था।

शुचिता की आँखों में झुका हुआ संकोच देखते ही उसने धीरे से कहा—

“तुम्हें किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं…

जो बीत गया, उसे बीत जाने दो।

अब हम मिलकर एक नई ज़िंदगी शुरू करेंगे।”

उसके इस वाक्य ने शायद पहली बार शुचिता के मन की गहराइयों में छुपे डर को कुछ हद तक कम कर दिया।

उसे लगा जैसे किसी ने उसके टूटे दिल पर मरहम लगा दिया हो।

🏡 ससुराल में बेटी से भी बढ़कर जगह

धीरे-धीरे उसने देखा कि इस घर में उसे बहू नहीं, सचमुच एक बेटी की तरह माना जा रहा है—

कोई बोझ नहीं, कोई मजबूरी नहीं।

उसकी सास सुबह-सुबह उसके कमरे में आकर पूछ लेती—

“बेटी, रात ठीक से सोई? कुछ चाहिए तो बताना।”

और उसके पति की हर बात में सम्मान और सहजता झलकती थी।

🌷 धीरे-धीरे लौटने लगी रंगत

नए घर में कुछ ही महीनों बाद शुचिता के चेहरे पर फिर से वह हल्की-सी हँसी लौटने लगी, जो कई सालों से कहीं खो गई थी।

उसके हाथों की मेंहदी फिर से सजने लगी, उसके पलों में फिर से बातों की गर्माहट लौट आई।

कभी जो आँसुओं में भीगकर रह जाने वाली लड़की थी, अब अपने जीवन में धीरे-धीरे विश्वास, सुकून और खुशियों का नया अध्याय लिख रही थी।


🌟 सबकी दुआएँ रंग लाई

जिस घर ने उसे सांत्वना दी,

जिस परिवार ने उसे संभाला,

जिस पति ने उसे स्वीकारा—

उन सबके स्नेह ने उसके जीवन को

पूरी तरह बदल दिया।


अब शुचिता सिर्फ जी नहीं रही थी—

वह खिल रही थी।

जैसे बरसों बाद किसी सूखे पेड़ पर

पहली बार कोमल-सी हरी पत्ती उभर आए।

यह सच्ची घटना पर आधारित है। घटना राजस्थान केडुंगरपुर जिले के पीपलागुंज गांव की है। 


कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जरूर बताइए। पढ़ने के लिए धन्यवाद.....

-बहू का कन्यादान: रिश्तों की नई मिसाल (कहानी); Bahu Ka Kanyadaan (Kahani) II SejalRaja II 

बेईमान चायवाला – जिगर की दर्दभरी कहानी(कहानी); Beiman Chaiwala-Jigar Ki Dardbhari Kahani II SejalRaja II

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मंगलवार, 25 नवंबर 2025

बेईमान चायवाला– जिगर की दर्दभरी कहानी(कहानी); Beiman Chaiwala-Jigar Ki Dardbhari Kahani II SejalRaja II

राजस्थान के जिगर की अनोखी सच्ची कहानी—जहां ईमानदारी की सजा ने उसे बेईमान बनाया, लेकिन जिंदगी के एक मोड़ ने उसे फिर से सच्चाई की राह पर ला खड़ा किया।



साल 1990 की बात है। जून का महीना…और तारीख थी 15। मुंबई की एक छोटी-सी चाय दुकान में काम करने वाला 18 साल का जिगर, पिछले महीने यानी मई की सैलरी का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। सैलरी भी कितनी—बस 600 रुपए।

लेकिन यही उसके लिए पूरी उम्मीद थी, घर की जरूरतें थीं और जीने का सहारा थी। 

उस दिन दुकान बंद होने वाली थी। जिगर दिल में खुश था कि आज पैसे मिलेंगे और वह घर थोड़े पैसे भेज पाएगा। लेकिन तभी…सेठ ने उसे बुलाया।

“जिगर, इस बार तेरी पूरी सैलरी काटनी पड़ी। एक भी रुपया नहीं मिलेगा।”

जिगर ने सुना और जैसे उसकी सांसें रुक गईं। कुछ पल तो उसे समझ ही नहीं आया कि यह मज़ाक है या सच।

“क्या…सेठ? पूरी सैलरी?”

उसकी आवाज कांप रही थी। दिल तेज़ धड़क रहा था। आंखे फटी की फटी।

सेठ ने बेपरवाही से कहा—

“हां। पिछले महीने तूने जो हिसाब लगाया था, उसमें कमी निकली है। दुकान का नुकसान हुआ। इसलिए पैसे काट लिए।”

जिगर अवाक रह गया।

वह रोज़ सुबह सबसे पहले दुकान पर आता था, रात को सबसे बाद में जाता था।

जहां सेठ भेजता—चाय पहुंचा आता।

हिसाब किताब भी पूरे ईमान से करता।

फिर गलती कहां हुई?

और अगर हुई भी…तो क्या उसके सारे 600 रुपए काट लेना ठीक था?

उस रात जिगर सो नहीं पाया।

उसका मन बार-बार बस एक ही बात पर अटक जाता—

“मैं मेहनत भी करता हूं, ईमानदारी रखता हूं । फिर सेठ ने ऐसा क्यों किया?”

उसके दिमाग में घर की तस्वीर घूम रही थी—

मां की दवाइयां, छोटी बहन की स्कूल फीस…

वह क्या बताएगा घरवालों को?

कैसे समझाएगा कि पूरे महीने की मेहनत का एक भी पैसा नहीं मिला?

जिगर की आंखों में आंसू तैर आए।

उसे पहली बार लगा कि शायद…

ईमानदारी का कोई मूल्य नहीं।

और बेईमानी ही दुनिया की असली ताकत है।

आगे जो जिगर के साथ हुआ…

उसे सुनकर आपका भी ईमानदारी से भरोसा डगमगा जाएगा, और आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि—

क्या सच में ईमानदारी हमेशा फायदेमंद होती है?

राजस्थान के डूंगरपुर का रहने वाला जिगर आज करीब 50 साल का है। इस समय मुंबई से सटे नालासोपारा में उसकी खुद की चाय की दुकान है। लेकिन उसकी इस सफलता के पीछे छिपा है एक दर्द, एक अनुभव—जो उसने अपने बचपन में झेला था।

जिगर बताता है कि जब वह 18 साल की उम्र में मुंबई आया था, तब वह एक सेठ की चाय दुकान पर काम करता था। उसके शब्दों में— “सेठ अगर मुझे पाँच कप चाय कहीं देने भेजता था और रास्ते में एक चाय नहीं बिकती थी, तो मैं लौटकर सच-सच बता देता था। चार चाय के पैसे दे देता था और एक अनबिकी चाय को अपनी डायरी में लिख लेता था। सेठ भी इसे अपनी डायरी में नोट कर लेता था। मैं हमेशा साफ-साफ हिसाब रखता था।”  

जिगर उसी ईमानदारी के साथ कई महीनों तक काम करता रहा। लेकिन वह दिन उसे आज भी ताज़ा याद है—जिस दिन उसकी पूरी सैलरी काट ली गई।

जिगर ने हिम्मत करके सेठ से पूछा— 

“सेठ, मेरी पूरी सैलरी क्यों काटी? मैं तो सारा हिसाब सही रखता हूं।”

सेठ का जवाब सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।

“जिगर, जब भी मैं पाँच चाय देता हूं, तुम चार का हिसाब देते हो। एक चाय का हिसाब तो देते ही नहीं। जितनी तुम्हारी सैलरी है, उतनी चाय के पैसे पूरे महीने तुमने दिए ही नहीं। इसलिए सैलरी काट ली।”

जिगर ने सफाई दी—

“सेठ, जो चाय नहीं बिकती है, उसका मैं आपको रोज बताता हूँ। आप भी अपनी डायरी में लिखते हो और मैं भी। आप डायरी देख लो।”

लेकिन सेठ ने डायरी खोलकर देखने की ज़रूरत ही नहीं समझी। उसका मन पहले से तय था।

जिगर यह समझ गया कि ईमानदारी साबित करने के लिए सबूत नहीं, सेठ की मर्जी चाहिए।

● फिर जिगर ने रास्ता बदला…

इसके बाद जिगर ने चुपचाप अपना तरीका बदल दिया।

अब सेठ पाँच कप चाय देता—

तो जिगर पांचों चाय ग्राहकों को बेच देता, पैसे अपनी जेब में रख लेता। वापस लौटते समय पांचों खाली कपों में पानी भरकर ले आता और सेठ को कहता—

“सेठ, आज एक भी चाय नहीं बिकी। लोगों ने कहा कि चाय अच्छी नहीं बनी।”

कुछ देर बाद वह पानी फेंक देता, कप धोकर रख देता।

और मज़े की बात—

अब सेठ ने कभी उसकी सैलरी नहीं काटी। बल्कि उस पर पहले से ज्यादा भरोसा करने लगा।

दुकान में आठ–दस लोग काम करते थे, लेकिन सेठ को सबसे ज्यादा भरोसा अब उसी जिगर पर था।

जो कभी सबसे ज्यादा ईमानदार था, और अब सबसे बड़ा बेईमान बन चुका था।

जिगर का नया तरीका भले गलत था, लेकिन सेठ को लगने लगा कि दुकान में सबसे भरोसेमंद कर्मचारी वही है।धीरे-धीरे सेठ का भरोसा जिगर पर और भी मजबूत होता गया। और एक दिन सेठ ने यह भरोसा खुलकर साबित भी कर दिया।

● लंबे समय के लिए सेठ को बाहर जाना था

एक बार की बात है—सेठ को किसी जरूरी काम से कई दिनों के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा। दुकान की देखभाल करने के लिए उसे किसी भरोसेमंद व्यक्ति की जरूरत थी।

उसने सबसे पहले जिगर को ही बुलाया।

सेठ बोला—

“जिगर, मुझे कुछ समय के लिए बाहर जाना है। दुकान संभाल लेगा?”

जिगर ने तुरंत हाँ तो कहा, लेकिन अपनी एक शर्त भी रख दी।

जिगर बोला—

“सेठ, मैं दुकान संभाल लूंगा… लेकिन मैं आपको हर महीने सिर्फ 20 हजार रुपये ही दूंगा।”

यह बात सोचने लायक थी,

क्योंकि उस समय दुकान की मासिक कमाई करीब 40 हजार रुपये थी।


लेकिन सेठ ने बिना किसी झिझक के जिगर की शर्त मान ली।

उसे पूरा विश्वास था कि जिगर उसके भरोसे को कभी तोड़ेगा नहीं।

यही वह दौर था जब कुछ समय तक जिगर ने सेठ की पूरी चाय दुकान अकेले संभाली।

● समय बदला, काम बदला—पर भरोसा नहीं बदला

आज जिगर नालासोपारा में अपनी खुद की चाय की दुकान चलाता है। वहीं उसका पुराना सेठ अब चाय दुकान छोड़कर होटल का धंधा करने लगा है।

लेकिन दिलचस्प बात यह है कि—

सालों बीत जाने के बाद भी सेठ का भरोसा जिगर पर जस का तस बना हुआ है।

हाल ही में जब दोनों की मुलाकात हुई तो सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा—

“जिगर, जब भी तुम चाहो… मेरा होटल संभाल सकते हो।”

जिंदगी अजीब है।

कभी ईमानदार जिगर को बेईमानी का सहारा लेना पड़ा—

और वही बेईमान जिगर, सेठ की नज़रों में आज भी सबसे ईमानदार और भरोसेमंद इंसान है।

समय किसी का इंतज़ार नहीं करता।

वो सबको बदलते हुए आगे बढ़ जाता है—और वही समय जिगर के अंदर भी एक दिन कुछ बदलकर चला गया।

जिगर की चाय की दुकान अब चल पड़ी थी। ग्राहक उसे पसंद करते थे। कुछ उसे बड़े प्यार से “जिगर भैया” कहकर बुलाते थे।

एक दिन एक छोटा बच्चा चाय लेने आया। भूख से उसकी हालत खराब थी। चाय के पैसे भी पूरे नहीं थे। जिगर ने बिना सोचे चाय उसे दे दी और दुकान के बाहर बैठाकर पूछ लिया—

“बेटा, पैसे कम हैं तो चिंता मत कर, पहले चाय पी लो।”

बच्चे की आँखों में चमक आ गई।

वह बोला—

“अगर आप जैसे लोग न हों तो हम गरीब लोग जियेंगे कैसे?”

उस मासूम बच्चे की बात जिगर के दिल में ऐसे उतरी कि वह कई मिनट तक खोया रहा।

उसे अपना अतीत याद आ गया—

उसकी ईमानदारी की सजा,

उसकी बेईमानी की जीत,

और सेठ का अंधा भरोसा।

उसने सोचा—

“मैं पैसे तो कमा लूंगा…

पर क्या मैं खुद को कभी माफ कर पाऊंगा?”

उसी शाम जिगर ने अपने पुराने सेठ को फोन किया। सेठ ने मुस्कुराकर कहा—

“जिगर, तुम हमेशा मेरे अच्छे लड़के रहे हो। आज भी रहोगे।”

बस, यही एक वाक्य जिगर के दिल में तूफान की तरह टकराया।

● जिगर ने उसी दिन फैसला कर लिया—

अब वो ईमानदारी नहीं छोड़ेगा।

न किसी के साथ धोखा करेगा,

न खुद से।

उसने अपनी दुकान पर एक छोटा सा बोर्ड लगा दिया—

“कमाएंगे थोड़ा, पर कमाएंगे साफ-साफ।”

धीरे-धीरे उसकी दुकान चल निकली।

लोग उसके स्वाद की नहीं,

उसके सच्चे दिल की वजह से आने लगे।

जिगर कहता है—

“बेईमानी से पैसा जरूर मिलता है, पर सुकून नहीं।

मैंने सुकून चुना।”

और बस…

यही वह मोड़ था जिसने जिगर को फिर से ईमानदार चायवाला बना दिया—

वह ईमानदारी जिसे कभी दुनिया ने तोड़ा था,

आज वही उसकी पहचान बन गई।

बेईमान चायवाला – जिगर की दर्दभरी कहानी(कहानी); Beiman Chaiwala-Jigar Ki Dardbhari Kahani II SejalRaja II

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सोमवार, 27 जनवरी 2025

खैनी (कहानी) II Khaini (Kahani, Story)

 खैनी (कहानी) II Khaini (Kahani, Story) 


शाम के 5 बज रहे हैं| पटना रेलवे स्टेशन पर काफी भीड़ है| भागम भाग मची हुई है| कुछ लोग ट्रेन से उतर रहे हैं| कुछ लोग ट्रेन पर चढ़ रहे हैं| कुछ लोग ट्रेन आने का इंतजार कर रहे हैं| कुछ लोग अपनी ट्रेन खुलने का इंतजार कर रहे हैं|

तभी स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर कुमार बुक स्टॉल के पास एक महिला के चीखने की आवाज आई| महिला की उम्र यही कोई 50 साल की होगी| वह एक आदमी की तरफ इशारा कर कर कह रही थी कि उसने मेरी इज्जत ले ली, दौलत ले ली, मेरा धर्म नष्ट कर दिया, मेरा मंगलसूत्र ले लिया, पर्स में रखे मेरे पूरे पैसे ले लिये|

महिला के इस अचानक से चीख चीखकर आरोप लगाने पर वह आदमी सकते में आ गया| अचानक से वहां पर भीड़ इकट्ठा हो गई| पुलिस भी आ गई| आदमी की उम्र करीब 60 साल की होगी| आदमी लंबे समय से स्टेशन पर जुता पॉलिश करने का काम करता आ रहा है| इस वजह से स्टेशन पर सामान बेचने वाले, पुलिस सब उस आदमी को अच्छे से जानते हैं|

जो लोग उस आदमी को जानते हैं, वो लोग उसकी बचाव में खड़े हो गये| पुलिस वाले भी आदमी का पक्ष ले रहे हैं| लेकिन, महिला आरोप लगा रही है, तो पुलिस को उस आदमी के खिलाफ कार्रवाई तो करनी है|

पुलिस आरोपी आदमी को स्टेशन पर बने पुछताछ कमरे में आरोप लगाने वाली महिला और आरोपी आदमी को लेकर जाती है| पुलिस आरोपी आदमी से पूछताछ करना शुरू करती है|

आदमी जब पुलिस से अपनी बात बताना शुरू करता है, तो सब लोग हैरान रह जाते हैं| आप भी उस आदमी की सफाई सुनकर चौंक जाएंगे|

आदमी ने कहा कि उस महिला ने उससे खैनी मांगी| खैनी मांगने और आरोप लगाने महिला भी स्टेशन पर घूम घूम कर सामान बेचा करती है|

जैसे ही आरोपी आदमी ने उस महिला को खैनी दिया, वैसे ही उस महिला ने आदमी पर तरह तरह का आरोप लगाने लगी| कहने लगी कि उसने मेरी इज्जत ले ली, दौलत ले ली, मेरा धर्म नष्ट कर दिया, मेरा मंगलसूत्र ले लिया, पर्स में रखे मेरे पूरे पैसे ले लिये|

पुलिस ने दोनों की बात सुनी| पुलिस को अब विस्तार से तहकीकात करके दोषी पर कार्रवाई करके उसे जेल भेजने की बारी है| पुलिस आरोप लगाने वाली महिला के पति को बुलाती है|

महिला ने पूछताछ में बताया कि वह स्टेशन के बगल में एक किराये के मकान में रहती है| पुलिस ने महिला के मकानमालिक को भी पूछताछ के लिए बुलाया|

आरोपी आदमी ने जब महिला के मकानमालिक को देखा, तो झट से पहचान गया| आरोपी आदमी भी अपना सामान उस महिला के मकानमालिक के घर पर रखता है|

मकानमालिक भी पुलिस के पास आरोपी आदमी को देखकर हैरान रह गया| मकानमालिक को जब पुलिस ने आरोप आदमी का आरोप बताया, तो मकानमालिक को विश्वास नहीं हुआ| मकानमालिक ने पुलिस के सामने भी आरोपी आदमी का बचाव किया|

अब पुलिस कशमकश में थी कि करें तो क्या करें| तभी पुलिस ने महिला के पति से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी| तब जाकर पति ने एक ऐसा खुलासा किया कि वहां पर मौजूद सभी लोग अंदर तक हिल गये|

पति ने कहा कि उसकी पत्नी यानी आरोप लगाने वाली महिला अनापशनाप आरोप लगाकर आदमी को ब्लैकमेल करके उनसे पैसे ऐंठती है और ये कोई पहला मामला नहीं है, जब वह ऐसा कर रही है|

फिर क्या था| पति के इस खुलासे के बाद पुलिस ने आरोप लगाने वाली महिला को गिरफ्तार करके छह महीने के लिए जेल भेज देती है|







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1-कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में रहने वाले हर लोगों के लिए जरूरी किताब।

2-अचानक की गई बंदी इंसान को संभलने का मौका नहीं देती। ऐसे में आनंद के साथ जीने के उपाय क्या हैं। मेरी इस किताब में पढ़िये...बंदी में कैसे रहें बिंदास" 

3-अमीर बनने के लिए पैसों से खेलना आना चाहिए। पैसों से खेलने की कला सीखने के लिए पढ़िये...

4-बच्चों को फाइनेंशियल एजुकेशन क्यों देना चाहिए पर हिन्दी में किताब- 'बेटा हमारा दौलतमंद बनेगा' - 

5-अमीर बनने की ख्वाहिश हममें से हर किसी की होती है, लेकिन इसके लिए लोगों को पैसे से पैसा बनाने की कला तो आनी चाहिए। कैसे आएगी ये कला, पढ़िये - 'आपका पैसा, आप संभालें' - 

6-इंसान के पास संसाधन या मार्गदर्शन हो या ना हो, सपने जरूर होने चाहिए। सिर्फ सपने के सहारे भी कामयाब होने वालों की दुनिया में कमी नहीं है। - 'जब सपने बन जाते हैं मार्गदर्शक' -

7-बेटियों को बहादुर बनने दीजिए और बनाइये, ये समय की मांग है,  "बेटी तुम बहादुर ही बनना " -

8 -अपनी हाउसिंग सोसायटी को जर्जर से जन्नत बनाने के लिए पढ़ें,  डेढ़ साल बेमिसाल -

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रविवार, 26 जनवरी 2025

जमालगोटा (कहानी) ll Jamalgota ( Story)

गर्मी का दिन था| रात के 11 बज गए थे| शादी करने के लिए बाराती लेकर लड़की के घर पहुंचे हुए लड़के वालों पर अब अपनी ही जिद भारी पड़ने लगी थी| भूख से सब का बुरा हाल था| बाराती झारखंड की राजधानी रांची से बिहार की मोक्ष भूमि गया के एक गांव में गई हुई थी| 



दरअसल, बाराती वालों ने तय किया हुआ था कि जब तक लड़की वाले की तरफ से और ज्यादा दहेज नहीं मिलेगा, तब तक वो लोग ना तो खाना खाएंगे और ना ही लड़की को विदा करके ले जाएंगे|


लड़के वाले दबाव डालकर लड़की वाले से कुछ और पैसा ऐंठना चाहते थे| लड़के वाले लड़की वालों को मजबुर समझकर उनसे ब्लैकमेल करना चाहते थे|


लड़के वाले इस उम्मीद में थे कि लड़की वाले ना केवल खाना खाने के लिए मनाने आएंगे, बल्कि दहेज के लिए मांगे गए पैसे भी लेकर आएंगे, लेकिन लड़की वाले ने उनके साथ वो किया, जिसकी कल्पना लडंके वाले ने सपने में भी नहीं की होगी|


लड़की वाले ने लड़के वाले की जिद और मांग के आगे झुकने से इंकार कर दिया| लड़की वाले ने लड़के वालों को खाने के लिए मानमनौव्वल की और ना ही शादी की रस्म पूरी करने के लिए अनुरोध किया|

अब क्या था| लड़के वाले की उम्मीदों पर पानी फिरने लगा था| रात के 11 बजते बजते लड़के वाले के पेट में चुहे दौड़ने लगे थे| लड़की वाले उनको खाने के लिए पूछ ही नहीं रहे थे| बाराती में आए ज्यादातर लोगों को अगले ही वापस ड्यूटी पर भी जानी थी| इसलिये शादी की रस्म में देरी से उनमें बेचैनी थी| गर्मी की वजह से खाना भी खराब हो रहा था|

लड़की वाले की तरफ से ग्रीन सिग्नल नहीं मिलता देख अंत में हारकर लड़के वाले ने अपनी जिद छोड़ दी| अब लड़के वाले खाना खाने की तरफ बढ़े| लड़के वाले खाना खाना शुरू किया| लेकिन, ये क्या बारी बारी से सबको पैखाना होना शुरू हुआ| पेट गुड़गुड़ाना शुरू हुआ|

आप सोचिये, ऐसा क्यों हुआ होगा? आपको लग रहा होगा कि ऐसा भोजन खराब होने की वजह से हुआ होगा| लेकिन, ऐसा नहीं है| दरअसल, लड़के वाले की परेशान करने वाली जिद से लड़की वाले परेशान हो गए थे और बदला लेने पर उतारू थे| लड़की वाले ने पूरा भोजन में ही जमालगोटा मिला दिया था|

भोजन और शादी की रस्म पूरी होने के बाद बारात वापस गया से रांची लौटी| लेकिन, लड़के वालों के लिए वापसी आसान नहीं रही| भर रास्ता लोगों को बाराती बस रूकवा रूकवा कर पैखाना करने के लिए जाना पड़ रहा था|







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गुरुवार, 22 अगस्त 2024

फिल्म कहानी लेखक हर दिन 2 सीन जरूर लिखें: फिल्म निर्माता Sooraj Barjatya का Film Writers को टिप्स II SWA II Screen Writers Association II

SWA यानी ScreenWritersAssociation  ने 21-08-2024 को मुंबई के वेदा कुनबा थियेटर में  जाने माने राइटर-डायरेक्टर- प्रोड्यूसर सूरज बड़जात्या से वार्तालाप की। 

हम आपके हैं कौन, मैंने प्यार किया, विवाह, ऊंचाई जैसी सुपर डुपर हिट फिल्म देने वाले सुरज बाड़जात्या ने लेखकों को सफल फिल्मकार बनने के टिप्स दिए। आप भी अगर सफल फिल्म राइटर-डायरेक्टर या प्रोड्यूसर बनना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाकर आप सूरज बड़जात्या की पूरी बातचीत देख सकते हैं- 

                                                                      (साभार- SWA)

सूरज बड़जात्या का फिल्म राइटर्स के लिए टिप्स- 

- Director को Script के साथ उसी तरह सोना चाहिये जैसे वह Wife के साथ सोता है|
-लव स्टोरी ऐसी हो जिसमें  प्यार की ऊंचाइयां हो और रिश्ते की गहराईयां हो|
- स्टोरी हमेशा मौलिक होनी चाहिये|
-स्टोरी लिखने से पहले उसका Template बना लेना चाहिये| इसमें Begining, Middle और End कैसा होगा, उसका जिक्र होना चाहिए| स्क्रीनप्ले के साथ Temporary Dialogue और गाने भी लिखते चले तो अच्छा रहेगा|

-कहानी लिखने से पहले हम एक Theme, Subject चुनते हैं |
-हर इंसान को अपनी खुद की कहानी जरूर लिखना चाहिए| इंसान जो Life जी रहा है या जो Life जी है, ईमानदारी से उसको कहानी में जरूर पिरोना चाहिए|

-कहानी का मुख्य किरदार पहले चुनना होगा| मुख्य किरदार के आसपास पूरी कहानी चलेगी| हर कहानी का पहले Plot तैयार करना होगा|

-आप जो कहानी दुनिया को बताना चाहते हैं, वह लिखते जाइये जहां तक लिखना चाहते हैं| जब कहानी पूरा लिख लें तब काट छांट करके फाइनल स्क्रीनप्ले का रूप दें| 

- Power of Originality and The life you lived कहानी मायने रखती है|
- Commercial Films लिखिये, उसमें बहुत Change करने के लिए कहा जाएगा| लेकिन एक अपनी कहानी जरूर लिखिये| आपकी अपनी कहानी में आपके पूरे परिवार मां, पापा, भाई, बहन की कहानी होनी चाहिए|
-वक्त आएगा तो आपकी वह कहानी कमाल करेगी|
-'मेरी जितनी फिल्म है, जो मैं ने जिया है वही आया है'
-20-21 साल की उम्र में सूरज वड़जात्या ने मैने प्यार किया मूवी लिखी,  उसको डायरेक्ट किया, प्रोड्यूस किया, फिल्म सुपर हिट हुई|
- Making of the scene के 4-5 Elements होने चाहिये: पहला Goal होना चाहिये, उसमें एक Obstacle होना चाहिये, उसमें एक Dilema होना चाहिये, उस Character का उस Particle चीज के बारे में एक Decision होना चाहिये,| हर Scene में ये Elements होना चाहिये| इसको GODD ( Goal, Obstacle, Dilemma, Decision) कहा जाता है|
-कई बार राइटर जो नहीं कर पाता है, वह अपने हीरो के जरिये अपनी कहानी में करवाता है| 
-बहुत पढ़िये, अखबार पढ़िये, जो कहानी अच्छी लगे उसकी Cutting रख लीजिये| साहित्य पढ़िये| 

-लंबी फिल्म में स्क्रीनप्ले लिखने में  act 1, act 2, act 3 तरीके इस्तेमाल 
-What is act 1, act 2, act 3?

Three act structure divides a story into three distinct sections, each anchored around one or more plot points that drive the overall action. Over the course of the three acts, a complete story structure unfolds. The main character passes through the stations of a character arc, the main plot builds toward the realization of the protagonist’s goal, and by the end, the action is resolved and key loose ends are tied up.

At their most basic, the three acts of a book or script represent a beginning, a middle, and an end. In most three-act stories, about 50 percent of the actual storytelling occurs in the second act, with 25 percent of the story falling in the first act and 25 percent falling in the final act.


How to Use Three Act Structure in Your Writing
The best way to incorporate three act structure into your own writing is to map out the key plot elements that should populate each act.

Act one: exposition, inciting action, turning point into act two
Act two: rising action, midpoint, turning point into act three (often a “dark night of the soul”)
Act three: pre-climax, climax, denouement

-गाना अगर होल्ड करना है तो उसको स्क्रीनप्ले में लिखना होगा|
-- संगीत हमारे कल्चर का हिस्सा है| इसलिये फिल्म में संगीत होना चाहिये|
-गलती हिट गाना तलाशने में होती है| हिट Situation होती है| पिक्चर  की जरूरत के हिसाब से गाने होने चाहिए| Situation हिट तो फिल्म हिट|
-- मुझे हिट गाना नहीं चाहिये, पिक्चर में मुझे हिट गाना चाहिये|
- जहां जरूरत है, वहां गाना बना है, हिट है या नहीं है, ये मायने नहीं रखता|
-- गाने Situational होने चाहिये| Situational गाने बनने बंद हो गये|
-- Screenplay लिखते समय Beginning, Middle, End में गाने जरूर रखिये|
-- लोग फिल्म बनाने से पहले कलेक्शन पर फोकस करते हैं| कलेक्शन पर फोकस करने के बजाय अच्छी फिल्म पर फोकस करें| आप अच्छा देंगे तो पैसा भी अच्छा आएगा| Money Will Follow, First Focus on making good Films.
-- मौका मिला है तो अच्छा करो, Ego को अलग रखकर अच्छा करो| अगर नहीं करना है तो पूरी तरह से छोड़ दो|
-- Template है, Structure है. आपके सामने हजारों कहानियां पड़ी है, आपको कहानी कैसे कहनी है,इस पर आपको फोकस करना है|
-- घूम फिरकर समाज में आ जाता हूं | जो ज़िंदगी जी है,उसी पर आ जाता हूं| कितना भी अलग लिखने की या करने की कोशिश करता हूं, घूम फिरकर समाज में आ जाता हूं|
- लिखो वो जो आपको आता है और आता है तो बोल हमसे नहीं होगा|
- फिल्म ऐसी बनाइये जो समाज में खूभसूरती लाए, एक Positivity लाए|
- -फिल्म के फ्लॉप होने पर आत्मविश्वास हिल जाता है, इंसान हताश हो जाता है| जब आप हताश होते हैं तो अपने माता पिता के पास जाइये| इसमें कोई Ego मत रखिये| हताशा से निकलने के लिए वहां से आपको कोई ना कोई उपाय जरूर मिलेगा| 
-- राजश्री प्रोडक्शन में अखबार की छोटी छोटी कहानियों, खबरों को फाइल किया जाता है|
-कभी कभी लिखियेगा जो चाहते हैं| वह पिक्चर बनेगी और चलेगी भी| तो लिखना कभी मत छोड़िये| कुछ नहीं तो अपनी ही कहानी लिखिये|
--Making of the scene Attractive और Engaging होने चाहिए|
-कई बार फिल्म की कहानी की Starting अच्छी मिल जाती है लेकिन कहानी के अंत को लेकर स्पष्टता नहीं रहती है, तो ऐसे में हमें रूक कर अच्छी Ending मिलने तक हमें इंतजार करना चाहिये|
-  जहां तक कहानी अच्छी लगे वहीं पर फिल्म खत्म कर सकते हैं|
- कई बार जब हम कुछ पढ़ते हैं तो हमें तय कर लेना चाहिये कि इसमें से हम क्या लें| 
-- अगर कोई चोर चोरी करने गया तो As a writer सबसे महत्वपूर्ण क्या है- What, Where, How या Why...
- As a writer सबसे जरूरी है Why पर फोकस करना....| उसके बाद What फिर Where और How को Care नहीं करना है|
-हर किरदार में हर Scene क्यों करना है, ये जानना सबसे महत्वपूर्ण है|
- अगर डायरेक्टर कहानी में Situation की जरूरत के हिसाब से कुछ Change करता है तो Screenwriter को आपत्ति नहीं करनी चाहिये|
-- अगर आप Creative Field में आए हैं तो आप अच्छे इंसान हैं|
-- जब आप किसी को Impress करने लगते हैं तो आपकी अच्छाई खत्म हो जाती है|
-आप जैसे हैं वैसे ही रहिये|
- Simple Simple Emotions को Capture करना सीखिये|
-- Idea के लिये हमेशा खुला रहें. कोई जरूरी नहीं है कि आप हमेशा अपने Senior से ही सीखें|
-कोई Writer अगर ये बोले कि मैं Bore हो रहा हूं तो Writers के लिये ये Allowed नहीं है|
- Writers को जब तक Commercial Success नहीं मिलेगी तब तक उसे Internal Satisfaction नहीं मिलेगी|
- Writers को Commercial Success मिलने में 
 समय लगता है, लेकिन सबका समय आएगा|
- इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि हम सबको वो लिखना पड़ेगा जो चलेगा जो चलता है| 
-सबका एक समय आता है, हमें इंतजार करना चाहिये और कोशिश करते रहना चाहिये|
- Basic Commercial Angle किसी भी कहानी में जरूर रखिये| क्योंकि Commerce हम सबके लिये जरूरी है|
-कहानी में ये जरूर होना चाहिये कि एक इंसान है जिसे जीवन में कुछ चाहिये, जो जीवन में कुछ बनना चाहता है| कुछ पाने की जिद में उस इंसान की रातों की नींद चली गई है| आपकी कहानी जितनी Morally Correct होगी. उतनी बड़ी Hit होगी| और वह इंसान जो चाहता है, End में उसे मिलनी चाहिए। ये जरूर रखें और फिल्म के शुरुआती 10-15 मिनट में वह पर्दे पर आ जाए। ये आपका बेसिक मापदंड है सक्सेस के लिए। फिर मैं प्यार किया या मुगले आजम को फिर आप अपने ढंग से कैसे भी लिखिये। आपका बेसिक कमर्शियल सेट है। आपका बेसिक प्रोडेयूसर सेट है। आपका बेसिक ओपनिंग सेट है। गलती हमारी तब होती है जब हम एक बहाव में लिखते हैं और हम लोग पॉइंट ऑफ व्यू भूल जाते हैं। 
- वन लाइन जो कहानी है- एक इंसान है जिसे कुछ चाहिए। 
-लेखन में अनुशासन बहुत बहुत महत्वपूर्ण है। रोज लिखने की आदत डालनी चाहिए। फिक्स होना चाहिए कि रोज मुझे लिखना है। और हर रोज दो दो सीन लिखना है। सूरज वड़जात्या ने ऐसा ही किया है। दो दो सीन हर दिन लिखने पर 60 दिनों में स्क्रीप्ट पूरी हो गई एक वर्जन। अगर रुक जाता कि ये अच्छा नहीं है तो फिल्म बनती ही नहीं। जब लिखें तो वापस पढ़ना नहीं है, अंत तक जाएं 60 दिनों तक। जब अंत तक जाएंगे तो आपको किरदार से प्यार हो जाएगा। फिर किरदार ही आपको बताएगा कि क्या बदलना है क्या नहीं। 
-शुरू पर ज्यादा समय मत दें। शुरू नहीं आ रहा है फिर भी आप अंत तक जाएं। मैंने प्यार किया फिल्म की कहानी मैंने पहले अंत तक लिखा फिर बाद में भी शुरूआत की कहानी समझ आई। तो मैंने प्यार किया का शुरुआत मैंने बाद में लिखा। बस लिखते जाइये लिखते जाइये। Not writing but rewriting and be prepared to rewriting. और कोई एग्जाम नहीं है। कोई चीज परफेक्ट नहीं होता। खेलते खेलते लिखते जाएं, रुकना नहीं है। 







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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

Audio Kahani:Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II

सेजल बिन सब सून (कहानी) Sejal Bin Sab Soon (Story) मेरा नाम रजनीश कांत है| मैं मुंबई में पत्रकार हूं| मुझे कहानी, कविता, गाना लिखने और सुनाने का शौक है। आज मैं अपनी लिखी कहानी "सेजल बिन सब सून" आप सबको सुना रहा हूं। कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जाकर जरूर लिखिएगा। आपसे गुजारिश है कि चैनल को जल्द से जल्द सब्सक्राइव कर लें। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।









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गुरुवार, 20 जून 2024

SWA India: अपनी लिखी कहानी OTT पर दिखाना चाहते हैं, ScreenWriters, Producer, Directors बता रहे हैं तरीका

कामयाब होने के लिए ScreenWriters को Producer और  Directors की सलाह 



क्या आपने कोई कहानी लिखी है और चाहते हैं कि आपकी कहानी को ओटीटी प्लेटफॉर्म या सीरियल या सिनेमा के जरिये आम लोगों तक पहुंचे, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि अपने इस सपने को कैसे पूरा करना है, तो Screenwriters Association (SWA India): https://swaindia.org/) द्वारा 19 जून 2024 को मुंबई के Veda Kunba Theatre में आयोजित पैनल डिस्कशन (https://www.youtube.com/watch?v=7TxQgRXxIuk)  को जरूर पूरा देखें। मैं भी इस पैनल डिस्कशन में SWA के सदस्य के तौर पर शामिल हुआ था। 





 "क्या चल रहा है? - Trends and Challenges in Our Industry Today,नाम से आयोजित इस पैनल डिस्कशन को स्क्रीनराइटर-डायरेक्टर Satyanshu Singh ने  Moderate किया। इस डिस्कशन में पैनलिस्ट के तौर पर प्रोड्यूसर Gaurav Verma, स्क्रीनराइटर Anu Singh Choudhary, स्क्रीनराइटर प्रोड्यूसर Biswapati Sarkar और प्रोड्यूसर Lohita Phooken ने अपने अपने विचार रखे। 

स्क्रीनराइटर Anu Singh Choudhary ने बताया कि किसी भी स्क्रीनराइटर को कामयाब कहानी लिखने के लिए क्या क्या करना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्क्रीनराइटर को डायरेक्टर प्रोड्यूसर और ट्रेंड के पीछे भागने के बजाय सबसे पहले अपनी कहानी पर काम करना चाहिए। हर दिन कम से कम तीन घंटे लिखने पर ध्यान देना चाहिए। चौधरी ने भी कहा कि स्क्रीनराइटर्स को पैसा के लिए केवल अपनी लेखनी के भरोसे नहीं रहना चाहिए, बल्कि उनके पास दूसरा इनकम स्रोत भी होना चाहिए। 


चौधरी ने कहा कि स्क्रीनराइटर को केवल लिखना ही नहीं चाहिए, साथ ही अपनी लिखी कहानी को दूसरों को भी सुनाना चाहिए और खुद भी अपने मोबाइल में रिकॉर्ड करके सुनना चाहिए। दूसरों से मिले फीडबैक का हमेशा स्वागत करना चाहिए। अपनी कहानी को लेकर स्क्रीनराइटर को लचीला होना चाहिए। 

पैनल डिस्कशन में शामिल सभी प्रोड्यूसर-फाइनेंशर का कहना है कि पहले अपनी कहानी को यूनिक बनाइये, तब डायरेक्टर प्रोड्यूसर के पास उसे ईमेल से भेजिये या फिर खुद से मिलकर अपनी कहानी सुनाइये। इनका ये भी कहना है कि ट्रेंड या डायरेक्टर प्रोड्यूसर के पीछे मत भागिये। 

आप पूरे डिसक्शन को जरूर देखिये-सुनिये और अपने सपने को पूरे कीजिए। 


> मेरी अन्य रचनाएं पढ़ें:

-सेजल बिन सब सून (कहानी); Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II

-टिकट का चक्कर (कहानी); Ticket Ka Chakkar Kahani) II SEJALRAJA II सेजलराजा II







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शनिवार, 8 जून 2024

सेजल बिन सब सून (कहानी); Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II





सेजल बिन सब सून (कहानी); Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II


शाम के करीब साढ़े छह बज रहे हैं। गर्मी का दिन है। तपते सुरज की तपिश धीरे धीरे कम हो रही है, सूर्य भी अब अस्त हो रहा है, सुरज की लालिमा अब खत्म हो रही है।  इन सबके बीच मुंबई से सटे नालासोपारा पश्चिम का सरकारी उद्यान वृंदावन गार्डेन में चहल-पहल है। बच्चे, बुढ़े, जवान, मर्द, महिलाएं सब के सब कुदरत का आनंद लेने में मशगूल हैं। कुछ दोस्तों संग बेंच पर बैठकर गपशप कर रहे हैं, कुछ वॉक कर रहे हैं. कुछ वीडियो बना रहे हैं, कुछ व्यायाम कर रहे हैं, कुछ डांस प्रैक्टिस कर रहे हैं, कुछ परिवार के साथ बैठकर नाश्ता कर रहे हैं, कुछ अलग अलग खेल खेल रहे हैं। कह सकते हैं कि पूरी फिजा में रोमानियत है। 

गार्डेन के सारे पीपल, आम, नीम, नारियल, अमरूद, आम, सारे फूलों के पेड़ हवा संग मस्तियां कर रहे हैं, पत्ते भी मदमस्त होकर झूम रहे हैं, रंग-बिरंगे फूलों का भी क्या कहना, वो सब भी अपने मनमोहक डांस से सबको रोमांचित होने का चांस दे रहे हैं। 

भले ही वृंदावन गार्डेन के पीपल, आम, नीम, नारियल, अमरूद, आम, सारे फूलों के पेड़ हवा संग मस्तियां कर रहे हैं, लेकिन उनमें एक उदासी छाई हुई सी लग रही है। 

पत्ते भी मदमस्त होकर झूम रहे हैं, लेकिन उनमें किसी तरह का उत्साह नहीं दिख रहा है। 

रंग-बिरंगे फूल भले ही अपने मनमोहक डांस से सबको रोमांचित होने का चांस दे रहे हैं, लेकिन उनमें वो जोश नहीं दिख रहा है, जो हमेशा से दिखता है।  

मैंने हवा संग मस्तियां कर रहे पेड़ों से पूछा- तुमलोग मस्तियां तो कर रहे हो, लेकिन तुम लोगों में उदासी क्यों छाई है? 

फिर, मैंने मदमस्त होकर झूम रहे पत्तों से पूछा- तुम लोगों में किसी तरह का उत्साह क्यों नहीं दिख रहा है? 

मैंने मनमोहक डांस कर रहे फूलों से भी पूछा- तुम लोगों में आज वो जोश नहीं दिख रहा है, जो हमेशा से दिखाई देता है। 

मुझसे पेड़ों ने, पत्तों ने, फूलों ने एक स्वर में कहा- अरे, यार पिछले तीन हफ्ते से गार्डेन में हंसती-मुस्कराती इतराती खूबसूरत सबकी चहेती सेजल नहीं आ रही है। मैंने उनके जवाब पर चौंकते हुए पूछा- ये सेजल कौन है ? हर दिन सुबह- शाम गार्डेन में इतने सारे लोग आते हैं, फिर केवल सेजल के नहीं आने से तुम लोगों में इतमी मायूसी क्यों है? 

तब पेड़ों,पत्तों, फूलों ने मुझसे कहा- तुम्हें नहीं पता है क्या। सिर्फ हम लोग ही नहीं, गार्डेन में शाम को आने वाले सारे लोग सेजल के तीन हफ्ते से नहीं आने से मायूस हैं, उदास हैं, बेचैन हैं। मैंने उनकी बातों पर हैरान होते हुए कहा- मतलब, वृ़दावन गार्डन में 'सेजल बिन सब सून' ऐसा है क्या? सबने एक स्वर में मुझसे कहा- बिल्कुल, तुम सही समझे। 

मैंने कहा, तुम सब को कैसे पता, कि गार्डेन में आने वाले सारे लोग सेजल के नहीं आने से मायूस हैं? तब सबने कहा, वो सामने वाला दो बेंच देख रहे हो।  गार्डन में टहलने वाले गोल रास्ते में लोगों के बैठने के लिए कई बेंच रखे हुए हैं, उन्हीं में से उन सब ने दो बेंच की तरफ इशारा किया। 

मैंने कहा- यहां तो बहुत सारे बेंच रखे हुए हैं, लेकिन तुम सब केवल दो बेंच की ही बात क्यों कर रहे हो? मेरे इस सवाल पर गार्डन के पेड़, पत्ते और फूलों ने जो कहा, उससे मैं क्या, कोई भी चौंक जाएगा। मैंने कहा, ऐसा क्या है आखिर। 

तब सबने मुझसे कहा। उन दोनों बेंच पर शाम को गार्डन के खुलने से लेकर गार्डन के बंद होने तक यानी शाम के 4 बजे से लेकर 8 बजे तक 75-80 साल के 7-8 बुजुर्ग बैठते हैं। और सबको हर दिन 30-35 साल की शादी-शुदा सेजल का इंतजार रहता है। उन सब ने ही मुझसे कहा कि, सेजल जब भी गार्डन आती है शाम साढ़े 6 बजे के करीब आती है। 

कुछ देर घूमती है और कुछ देर बेंच पर बैठ कर खुले आसमान तले आजादी का आनंद उठाती है और फिर अपने घर चली जाती है। हमेशा अकेली रहती है। ज्यादातर समय अपने मोबाइल पर लगी रहती है। केवल एक महिला के साथ अक्सर दिखाई देती है सेजल । 

मैंने पूछा, कि गार्डन में बहुत सारे लोग आते हैं, लेकिन तुम सब को कैसे पता कि जो 75-80 साल के 7-8 बुजुर्ग हैं, उनको सेजल का ही इंतजार रहता है। तब सबने कहा-सेजल के आने तक उन सभी का ध्यान अपनी अपनी घड़ियों और गार्डन के गेट पर रहता है। जैसे ही सेजल गार्डन में प्रवेश करती है और उन बुजुर्गों की निगाहों से गुजरती है, तो उनमें एक अजीब सी हलचल होने लगती है। सभी बुजुर्ग आंखों ही आंखों में सेजल के आने की खुशी जाहिर करते हैं और सेजल के विपरीत दिशा से घूमना शुरू कर देते हैं। मैंने चौंकते हुए कहा-अच्छा, ये बात है। 

सेजल पर गलत निगाह रखने वाले उन बुजुर्गों के बारे में पेड़, पत्तों, फूलों ने एक बात और जो मुझसे कहा, उससे मेरे पैरों तली जमीन घिसक गई। एक पेड़ ने कहा- जब एक दिन सेजल काफी देरी से गार्डन में आई तो सारे बुजुर्ग काफी बैचेन थे। 

जब सेजल ने घूमना शुरू किया, तो उन 7-8 बुजुर्गों में से दो बुजुर्गों ने भी सेजल के विपरीत दिशा से घूमना शुरू किया और जब वो दोनों सेजल के बगल से गुजर रहे थे, तो उनमें से एक ने दूसरे बुजुर्ग से कहा कि-ये महिला काफी इंतजार करवाती है! मैंने चौंकते हुए कहा, कि ओहो, ऐसी बात है। 

 मैंने उन सबसे कहा, कि ये तो बहुत गंभीर बात है। सेजल के बाप-दादा की उम्र के बुजुर्गों की इतनी गंदी निगाह, उन बुजुर्गों को तो शर्म आनी चाहिए, अपनी ऐसी घटिया नीयत पर। 

फिर, मैंने पेड़ों, पत्तों, फूलों से कहा कि ये तो रही 7-8 घटिया बुजुर्गों की बात, जो सेजल पर गलत नीयत रखते हैं। ऐसे लोगों को तो सार्वजनिक जगहों पर एंट्री पर ही रोक लगा देनी चाहिए। अपने बुढ़ापे के गलत फायदा उठाने वालों को बहिष्कार करना चाहिए। तो, अब बताओ तुम सब और कैसे कह सकते हो कि इस गार्डन में सेजल बिन सब सून रहता है। 

तब उन सब ने कहा कि हम सबने गार्डन आने वाली की महिलाओं को सेजल की खूबसूरती, उसके चलने, बात करने, मुस्कराने की अदाओं पर जलते देखा है। यही नहीं, गार्डन में आने वाले बहुत सारे बच्चे भी सेजल के आकर्षण में डूबे दिखाई देते हैं। 

मैंने मन ही मन सोचा- सेजल को लेकर गार्डन में जब इतनी दीवानगी है, तो सचमुच हम कह सकते हैं कि- सेजल बिन सब सून। 


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बहू का कन्यादान: रिश्तों की नई मिसाल (कहानी); Bahu Ka Kanyadaan (Kahani) II SejalRaja II

“पापा… दादा… मम्मी… दादी…! आप सब मेरा कहा ध्यान से सुन लीजिए,”  कमलेश की आवाज में कंपन था, मगर आँखों में किसी गहरी पीड़ा का भार। “आज से शुचि...