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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

Audio Kahani:Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II

सेजल बिन सब सून (कहानी) Sejal Bin Sab Soon (Story) मेरा नाम रजनीश कांत है| मैं मुंबई में पत्रकार हूं| मुझे कहानी, कविता, गाना लिखने और सुनाने का शौक है। आज मैं अपनी लिखी कहानी "सेजल बिन सब सून" आप सबको सुना रहा हूं। कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जाकर जरूर लिखिएगा। आपसे गुजारिश है कि चैनल को जल्द से जल्द सब्सक्राइव कर लें। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।









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शनिवार, 8 जून 2024

सेजल बिन सब सून (कहानी); Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II





सेजल बिन सब सून (कहानी); Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II


शाम के करीब साढ़े छह बज रहे हैं। गर्मी का दिन है। तपते सुरज की तपिश धीरे धीरे कम हो रही है, सूर्य भी अब अस्त हो रहा है, सुरज की लालिमा अब खत्म हो रही है।  इन सबके बीच मुंबई से सटे नालासोपारा पश्चिम का सरकारी उद्यान वृंदावन गार्डेन में चहल-पहल है। बच्चे, बुढ़े, जवान, मर्द, महिलाएं सब के सब कुदरत का आनंद लेने में मशगूल हैं। कुछ दोस्तों संग बेंच पर बैठकर गपशप कर रहे हैं, कुछ वॉक कर रहे हैं. कुछ वीडियो बना रहे हैं, कुछ व्यायाम कर रहे हैं, कुछ डांस प्रैक्टिस कर रहे हैं, कुछ परिवार के साथ बैठकर नाश्ता कर रहे हैं, कुछ अलग अलग खेल खेल रहे हैं। कह सकते हैं कि पूरी फिजा में रोमानियत है। 

गार्डेन के सारे पीपल, आम, नीम, नारियल, अमरूद, आम, सारे फूलों के पेड़ हवा संग मस्तियां कर रहे हैं, पत्ते भी मदमस्त होकर झूम रहे हैं, रंग-बिरंगे फूलों का भी क्या कहना, वो सब भी अपने मनमोहक डांस से सबको रोमांचित होने का चांस दे रहे हैं। 

भले ही वृंदावन गार्डेन के पीपल, आम, नीम, नारियल, अमरूद, आम, सारे फूलों के पेड़ हवा संग मस्तियां कर रहे हैं, लेकिन उनमें एक उदासी छाई हुई सी लग रही है। 

पत्ते भी मदमस्त होकर झूम रहे हैं, लेकिन उनमें किसी तरह का उत्साह नहीं दिख रहा है। 

रंग-बिरंगे फूल भले ही अपने मनमोहक डांस से सबको रोमांचित होने का चांस दे रहे हैं, लेकिन उनमें वो जोश नहीं दिख रहा है, जो हमेशा से दिखता है।  

मैंने हवा संग मस्तियां कर रहे पेड़ों से पूछा- तुमलोग मस्तियां तो कर रहे हो, लेकिन तुम लोगों में उदासी क्यों छाई है? 

फिर, मैंने मदमस्त होकर झूम रहे पत्तों से पूछा- तुम लोगों में किसी तरह का उत्साह क्यों नहीं दिख रहा है? 

मैंने मनमोहक डांस कर रहे फूलों से भी पूछा- तुम लोगों में आज वो जोश नहीं दिख रहा है, जो हमेशा से दिखाई देता है। 

मुझसे पेड़ों ने, पत्तों ने, फूलों ने एक स्वर में कहा- अरे, यार पिछले तीन हफ्ते से गार्डेन में हंसती-मुस्कराती इतराती खूबसूरत सबकी चहेती सेजल नहीं आ रही है। मैंने उनके जवाब पर चौंकते हुए पूछा- ये सेजल कौन है ? हर दिन सुबह- शाम गार्डेन में इतने सारे लोग आते हैं, फिर केवल सेजल के नहीं आने से तुम लोगों में इतमी मायूसी क्यों है? 

तब पेड़ों,पत्तों, फूलों ने मुझसे कहा- तुम्हें नहीं पता है क्या। सिर्फ हम लोग ही नहीं, गार्डेन में शाम को आने वाले सारे लोग सेजल के तीन हफ्ते से नहीं आने से मायूस हैं, उदास हैं, बेचैन हैं। मैंने उनकी बातों पर हैरान होते हुए कहा- मतलब, वृ़दावन गार्डन में 'सेजल बिन सब सून' ऐसा है क्या? सबने एक स्वर में मुझसे कहा- बिल्कुल, तुम सही समझे। 

मैंने कहा, तुम सब को कैसे पता, कि गार्डेन में आने वाले सारे लोग सेजल के नहीं आने से मायूस हैं? तब सबने कहा, वो सामने वाला दो बेंच देख रहे हो।  गार्डन में टहलने वाले गोल रास्ते में लोगों के बैठने के लिए कई बेंच रखे हुए हैं, उन्हीं में से उन सब ने दो बेंच की तरफ इशारा किया। 

मैंने कहा- यहां तो बहुत सारे बेंच रखे हुए हैं, लेकिन तुम सब केवल दो बेंच की ही बात क्यों कर रहे हो? मेरे इस सवाल पर गार्डन के पेड़, पत्ते और फूलों ने जो कहा, उससे मैं क्या, कोई भी चौंक जाएगा। मैंने कहा, ऐसा क्या है आखिर। 

तब सबने मुझसे कहा। उन दोनों बेंच पर शाम को गार्डन के खुलने से लेकर गार्डन के बंद होने तक यानी शाम के 4 बजे से लेकर 8 बजे तक 75-80 साल के 7-8 बुजुर्ग बैठते हैं। और सबको हर दिन 30-35 साल की शादी-शुदा सेजल का इंतजार रहता है। उन सब ने ही मुझसे कहा कि, सेजल जब भी गार्डन आती है शाम साढ़े 6 बजे के करीब आती है। 

कुछ देर घूमती है और कुछ देर बेंच पर बैठ कर खुले आसमान तले आजादी का आनंद उठाती है और फिर अपने घर चली जाती है। हमेशा अकेली रहती है। ज्यादातर समय अपने मोबाइल पर लगी रहती है। केवल एक महिला के साथ अक्सर दिखाई देती है सेजल । 

मैंने पूछा, कि गार्डन में बहुत सारे लोग आते हैं, लेकिन तुम सब को कैसे पता कि जो 75-80 साल के 7-8 बुजुर्ग हैं, उनको सेजल का ही इंतजार रहता है। तब सबने कहा-सेजल के आने तक उन सभी का ध्यान अपनी अपनी घड़ियों और गार्डन के गेट पर रहता है। जैसे ही सेजल गार्डन में प्रवेश करती है और उन बुजुर्गों की निगाहों से गुजरती है, तो उनमें एक अजीब सी हलचल होने लगती है। सभी बुजुर्ग आंखों ही आंखों में सेजल के आने की खुशी जाहिर करते हैं और सेजल के विपरीत दिशा से घूमना शुरू कर देते हैं। मैंने चौंकते हुए कहा-अच्छा, ये बात है। 

सेजल पर गलत निगाह रखने वाले उन बुजुर्गों के बारे में पेड़, पत्तों, फूलों ने एक बात और जो मुझसे कहा, उससे मेरे पैरों तली जमीन घिसक गई। एक पेड़ ने कहा- जब एक दिन सेजल काफी देरी से गार्डन में आई तो सारे बुजुर्ग काफी बैचेन थे। 

जब सेजल ने घूमना शुरू किया, तो उन 7-8 बुजुर्गों में से दो बुजुर्गों ने भी सेजल के विपरीत दिशा से घूमना शुरू किया और जब वो दोनों सेजल के बगल से गुजर रहे थे, तो उनमें से एक ने दूसरे बुजुर्ग से कहा कि-ये महिला काफी इंतजार करवाती है! मैंने चौंकते हुए कहा, कि ओहो, ऐसी बात है। 

 मैंने उन सबसे कहा, कि ये तो बहुत गंभीर बात है। सेजल के बाप-दादा की उम्र के बुजुर्गों की इतनी गंदी निगाह, उन बुजुर्गों को तो शर्म आनी चाहिए, अपनी ऐसी घटिया नीयत पर। 

फिर, मैंने पेड़ों, पत्तों, फूलों से कहा कि ये तो रही 7-8 घटिया बुजुर्गों की बात, जो सेजल पर गलत नीयत रखते हैं। ऐसे लोगों को तो सार्वजनिक जगहों पर एंट्री पर ही रोक लगा देनी चाहिए। अपने बुढ़ापे के गलत फायदा उठाने वालों को बहिष्कार करना चाहिए। तो, अब बताओ तुम सब और कैसे कह सकते हो कि इस गार्डन में सेजल बिन सब सून रहता है। 

तब उन सब ने कहा कि हम सबने गार्डन आने वाली की महिलाओं को सेजल की खूबसूरती, उसके चलने, बात करने, मुस्कराने की अदाओं पर जलते देखा है। यही नहीं, गार्डन में आने वाले बहुत सारे बच्चे भी सेजल के आकर्षण में डूबे दिखाई देते हैं। 

मैंने मन ही मन सोचा- सेजल को लेकर गार्डन में जब इतनी दीवानगी है, तो सचमुच हम कह सकते हैं कि- सेजल बिन सब सून। 


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मंगलवार, 4 जून 2024

टिकट का चक्कर (कहानी); Ticket Ka Chakkar Kahani) II SEJALRAJA II सेजलराजा II



टिकट का चक्कर (कहानी); Ticket Ka Chakkar Kahani) II SEJALRAJA II सेजलराजा II



अब अजीत के सामने सिवाय झुंझलाहट के, कोई और उपाय नहीं था। मुंबई के सीएसटी स्टेशन से बिहार के पटना जाने वाली ट्रेन राजेन्द्रनगर एक्सप्रेस के आरक्षण का अंतिम चार्ट तैयार हो चुका था। इस चार्ट को देखकर अजीत के पैरों तले की जमीन खिसक गई। सीट के कन्फर्मेंशन के लिए अजीत आश्वस्त था...अंतिम आरक्षण चार्ट के तैयार होने से कुछ समय पहले तक ट्रेन में सीट को लेकर आश्वस्त और अपने होम टाउन पहुंचने के ख्याल से उत्साहित अजीत की सारी खुशियां मानों गायब हो चुकी थी, चेहरे की मुस्कान यकायक छूमंतर हो चुकी थी। अजीत की अब तनिक भी इच्छा सीएसटी स्टेशन पर रुकने की नहीं रही। हालांकि अजीत ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी थी।

अजीत ने होम टाउन जाने के लिए टिकट तो लिया था ही...दफ्तर से सात दिनों की छुट्टी भी ली थी...ऐसे में होम टाउन जाने के लिए कोई न कोई उपाय करने का मन बनाया। अजीत ने अपने उस दोस्त से बात की, जिसने ट्रेन में सीट कन्फर्म कराने का भरोसा दिया था। दरअसल, गलती खुद अजीत की थी, उसके दोस्त की नहीं। अजीत ने ही अपने दोस्त से टिकट कन्फर्म कराने का अनुरोध किया था। साथ ही अजीत के उस दोस्त ने आगाह भी किया था कि टिकट शायद ही कन्फर्म हो...हालांकि इससे पहले टिकट के कन्फर्म होने में कभी कोई परेशानी नहीं आई थी। लेकिन शायद रेलवे के नियम में कुछ बदलाव कर दिया गया था जिससे रेलवे अधिकारी के लिए भी टिकट कन्फर्म कराना आसान नहीं रहा।

कोई और समय होता तो टिकट शायद कन्फर्म भी हो जाता..लेकिन पीक सीजन था। दशहरा, दीपावली, छठ का सीजन चल रहा था...इस दौरान बिहार और उत्तरप्रदेश जाने वाली ट्रेनों में पांव रखने की भी जगह नहीं रहती है...क्या स्लीपर बोगी, क्या सामान्य श्रेणी के बोगी और क्या एसी बोगी...सारी की सारी सीटें भर जाती है...इस फेस्टिव सीजन में...।

इस दौरान वैसे लोग खुशकिस्मत होते हैं जिन्हें आरक्षित सीट मिल जाती है...जो लोग आरक्षित सीट से वंचित रहते हैं, उनकी कोशिश रहती है कि किसी भी तरह से ट्रेन में घूसने भर की जगह मिल जाए...। ऐसी बात नहीं है कि अजीत ट्रेन में घूस नहीं सकता था...वो भी दूसरे लोगों की तरह ट्रेन में घूस तो सकता था लेकिन फिर करीब तीस घंटे का सफर आसान नहीं था।

खैर, ये तो रही अजीत के टिकट कन्फर्म कराने के अनुरोध की बात, लेकिन जब टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो बेचारा
पशोपेश में पड़ गया। कहते हैं न कि उम्मीद पर दुनिया टिकी है...अजीत ने अपने उस अजीज दोस्त से, जिसने टिकट कन्फर्म कराने का भरोसा दिया था, एक बार फिर से बात की...इस उम्मीद में कि शायद कुछ बात बन जाए। अजीत ने कहा, भाई, टिकट तो कन्फर्म नहीं हो पाया, अब क्या किया जाए ? अजीत के उस दोस्त ने ट्रेन के टीटीई से बात कर कुछ जुगाड़ करने की सलाह दी। अपने यहां जुगाड़तंत्र सबसे कामयाब नुस्खा है...कोई भी काम करवाना हो, उसके नियम, कानून, शर्तें बाद में देखो, पहले जुगाड़ का प्रबंध करो...अगर आप ऐसा करते हैं तो समझ लीजिए आपका काम हो गया।


लेकिन, रेलवे प्लेटफॉर्म पर अजीत का मन अब उखड़ चुका था..अजीत के साथ दिक्कतये भी थी कि वह जुगाड़ करने में अनाड़ी है...इसलिए उसने अपने दोस्त की सलाह को नजरअंदाज कर स्टेशन से बाहर निकलना ही बेहतर समझा। हालांकि होम टाउन जाने पर अब भी अजीत अड़ा हुआ था...अजीत के सामने अब फ्लाईट से पटना जाने का विकल्प बचा था। अजीत पहले भी कई मौकों पर फ्लाईट से पटना जा चुका है और उसके लिए फ्लाईट से जाना कोई नई बात नहीं थी। इतना सब होते-होते रात के दस बज चुके थे।


अजीत सीधे दफ्तर से रेलवे स्टेशन आया था...सुबह सात बजे से शाम के चार बजे तक उसने दफ्तर में काम किया। फिर सीधे स्टेशन चला आया। अजीत पर थकान हावी होने लगी थी। थकान होना लाजिमी भी था। अगर ट्रेन में उसकी सीट कन्फर्म रहती तो ट्रेन में वह पैर पसारकर आराम फरमाते रहता...

थक हारकर अजीत ने जेट एयरवेज के कस्टमर केयर से बात की...लेकिन उसे यहां से भी निराशा हाथ लगी। जेट
एयरवेज के पटना जाने वाली फ्लाईट में तो उस दिन कोई भी सीट नहीं थी और अगले दिन की फ्लाईट में भी एक ही सीट मौजूद थी। इतना पर भी होम टाउन जाने को लेकर अजीत का मनोबल काफी ऊंचा था लेकिन जब जेट एयरवेज के कस्टमर केयर ने फ्लाईट का किराया बताया तो अजीत के तो होश ही उड़ गए।

आम दिनों में मुंबई से पटना के लिए जो 6-8 हजार रुपए प्रति शख्स रहता है वह उस दिन के लिए पच्चीस हजार रुपए था। अजीत ने पच्चीस हजार रुपए चुकाकर होम टाउन जाने का विचार छोड़ दिया। अब अजीत के सामने होम टाउन जाने का कोई और विकल्प नहीं बचा था और मुंबई के अपने घर में लौटने के अलावा उसके सामने कोई और चारा नहीं था।

इन सब दिक्कतों से गुजरने के बाद अजीत का मन खट्टा हो गया था और मुंबई के अपने फ्लैट में जाने की उसकी इच्छा नहीं हो रही थी। अजीत ने तब अपने एक और अजीज दोस्त को कॉल किया। अजीत के दोस्त ने उसका कॉल रिसीव किया और उसे घर जाने की शुभकामना दी...लेकिन उसे पता नहीं था कि अजीत की सीट कन्फर्म नहीं हुई है और वो वापस अपने फ्लैट लौट रहा है। अजीत ने कुछ दिन पहले ही अपने उस अजीज दोस्त से घर जाने की जानकारी दी थी...इसलिए अजीत को उसने हैप्पी जर्नी कहकर शुभकामना दी थी।


अजीत ने अपने दोस्त को टिकट कन्फर्म न होने की जानकारी दीऔर उस रात उसी के घर में रुकने की गुजारिश की। अजीत के उस दोस्त ने कहा कि मेरे घर पर आ जाओ, कोई दिक्कत नहीं होगी। वैसे भी मैं घर पर अकेला ही हूं....। अजीत का वह दोस्त विरार स्टेशन के पास रहता है...अजीत के उस दोस्त ने विरार स्टेशन पर आकर उसे रिसीव करने का भरोसा दिया। करीब चालीस मिनट के बाद अजीत लोकल ट्रेन से विरार रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन से उतरकर पहले तो अजीत ने प्लेटफॉर्म पर अपने दोस्त को इधर, उधर ढूंढा, लेकिन अजीत का वह दोस्त कहीं नहीं दिखा। अब अजीत ने अपने दोस्त को कॉल किया। हद तो तब हो गई जब दो बार कॉल करने के बाद भी अजीत के उस दोस्त ने कोई रिस्पांस नहीं दिया।


इतना सबकुछ होते-होते रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे। अब अजीत बिल्कुल पूरी तरह से थक चुका था और अपने फ्लैट में जाना ही उसे मुकम्मल जान पड़ा। इतना सब कुछ होने के बाद अजीत ने भगवान को शुक्रिया किया और अपने फ्लैट पर लौट आया। अपने फ्लैट में आकर में आकर अजीत नींद की आगोश में चला गया। अजीत की आंख ही लगी थी कि विरार के उसके दोस्त ने कॉल करना शुरू किया। अजीत ने उसका कॉल रिसीव नहीं किया। आखिरकार अजीत का वह दोस्त उसके फ्लैट में आ पहुंचा। अजीत ने अपने दोस्त का स्वागत किया और सोने के लिए कहा।


अजीत को कुछ समझ में नहीं आया कि उस रात उसके साथ जो कुछ हुआ आखिरकार उसका दोषी कौन है ? अजीत के लिए उसका अजीज दोस्त दौलत से कम नहीं होता है। अजीत ने नियति को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए मान लिया कि ईश्वर के इस 'न' में उसके लिए बेहतरीन 'हां' छुपा हुआ हो सकता है...अजीत ने उस रात की परेशानी के लिए सबको धन्यवाद दिया और मान लिया कि जिंदगी में कहानियां बनने कि लिए कुछ न कुछ होना जरूरी है...







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