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शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

बहू का कन्यादान: रिश्तों की नई मिसाल (कहानी); Bahu Ka Kanyadaan (Kahani) II SejalRaja II

“पापा… दादा… मम्मी… दादी…! आप सब मेरा कहा ध्यान से सुन लीजिए,” 

कमलेश की आवाज में कंपन था, मगर आँखों में किसी गहरी पीड़ा का भार।

“आज से शुचिता मेरी पत्नी नहीं… मेरी बहन कहलाएगी।”



सिर्फ 18 साल के कमलेश की इस घोषणा ने पूरे घर को जैसे ठिठका दिया।

एक पल में कमरे की हवा भारी हो गई। सभी एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे—कभी पापा दादा की ओर

देखते, कभी मम्मी दादी की ओर, और फिर सहमी हुई नजरों से कमलेश को।

शुचिता, जो बस एक साल पहले ही इस घर की बहू बनकर आई थी, अपने पति की बात सुनकर 

स्तब्ध रह गई। उसका दिल जैसे एकाएक धड़कना भूल गया। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि 

कमलेश ऐसा क्यों कह रहा है।

कमरे में फैली खामोशी में एक ही सवाल तैर रहा था—

आखिर कमलेश को हुआ क्या है?

कमलेश की घोषणा सुनकर घर में जैसे सन्नाटा पसर गया था। सभी के चेहरों पर उलझन और चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं। 

कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था, और कोई इस अजीबोगरीब बदलाव के पीछे का कारण जानना चाहता था।

पापा ने सबसे पहले मुँह खोला, लेकिन शब्द उनके गले में जैसे अटक गए थे।

"बेटा, आखिर हुआ क्या है? क्या… क्या बहू ने कुछ किया है?"

कमलेश के पापा की आवाज में घबराहट थी, जैसे वह खुद इस अनहोनी का कारण जानने के लिए बेताब थे। उनका मन एक अजीब उलझन में फंसा हुआ था।

मम्मी ने भी घबराए हुए स्वर में कहा, "हां, बेटा… जो कुछ भी हुआ, हमें खुलकर बताओ। लेकिन, ऐसा मत कहो कि—शुचिता तुम्हारी पत्नी नहीं, बहन है। भगवान के लिए, ऐसा मत कहो।"

उनकी आवाज में एक मां की चिंता थी, जो अपने बेटे के इस अजीब फैसले को समझने में नाकाम हो रही थी।

फिर दादी ने भी गहरी चिंता जताई, "बेटा, परिवार की इज्जत का ख्याल रखना। पास-पड़ोस वाले अगर ये सब जानेंगे, तो क्या कहेंगे? कुछ तो बोल, बेटा… आखिर तुमने ऐसा क्यों किया?"

दादी का डर था कि यह अचानक का फैसला पूरे परिवार की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े कर सकता था। उनकी आँखों में एक ठंडी और उदास चिंता थी, जैसे वह सब कुछ खो देने का डर महसूस कर रही थीं।

अंत में, दादा ने अपनी गंभीर आवाज में कहा, "बेटा, तुम्हें बताना तो पड़ेगा कि ऐसा तुमने क्यों किया? क्या हमारी बहू में कोई कमी है?"

दादा के शब्दों में नाराज़गी नहीं, बल्कि एक गहरी चिंता और दयालुता थी। उन्हें लगता था कि अगर कोई गलती हुई है, तो वह केवल परिवार का निजी मामला नहीं, बल्कि उनकी ज़िंदगी के फैसले पर भी असर डालने वाली बात हो सकती है।

सभी की आँखों में सवाल थे, लेकिन कोई जवाब देने वाला नहीं था। शुचिता, जो चुपचाप खड़ी थी, अब तक कुछ नहीं कह पाई थी। उसका मन भी उलझन में था। क्या कमलेश को सही में ऐसा महसूस हुआ था कि वह अपनी पत्नी को बहन मानने की घोषणा कर दे? क्या वह खुद  उस रिश्ते में किसी गहरे बदलाव को महसूस कर रहे थे?

सभी के चेहरों पर वही एक सवाल था—क्या ऐसा फैसला अचानक और बिना किसी वजह के लिया जा सकता है?

कमलेश ने अपनी इस घोषणा का कारण किसी को नहीं बताया।

परिवार वाले अभी उसकी इस बात के सदमे से उबरे भी नहीं थे कि एक दिन अचानक कमलेश बिना किसी को कुछ बताए घर छोड़कर चला गया।

इस तरह कमलेश ने अपने परिवार को दूसरा गहरा झटका दे दिया।

परिवार वालों ने कमलेश का एक-दो साल तक इंतज़ार किया।

कमलेश के इस व्यवहार से उसकी बेचारी पत्नी शुचिता का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था।

कभी वह अपनी किस्मत को कोसती, कभी अपने मां-बाप को, और कभी भगवान को।

शुचिता की उम्र ही क्या थी—सिर्फ 19 साल।

इतनी कम उम्र में उसे ऐसे कठिन और दर्दभरे दिन देखने पड़ रहे थे।

शुचिता भीतर से कितनी ही टूटी हुई क्यों न हो, पर उसने कभी अपने कर्तव्यों से मुँह नहीं मोड़ा।

आँखों में रोज़ नए आँसू उतर आते, लेकिन वह फिर भी पूरे मन से घर का हर काम करती रही— मानो उसके दुख ने उसके हाथों की रफ्तार को रोकना सीखा ही न हो।

उसका हाल देखने लायक नहीं था—चेहरे पर थकान, आँखों में खालीपन और मन में अनकही पीड़ा।

उसकी यह मासूम बेबसी अब सिर्फ उसके भीतर नहीं रह गई थी;

उसकी वेदना ने पूरे घर को अपनी गिरफ्त में ले लिया था।

ससुराल वाले भी उसके दुख से व्यथित थे।

हर कोई अपने-अपने तरीके से सोच रहा था कि आखिर इस कोमल-सी लड़की के लिए क्या किया जाए।

कैसे उसके दिल पर चढ़ी इस भारी छाया को हटाया जाए।

सब मिलकर जैसे किसी अदृश्य दर्द से लड़ रहे थे—

एक ऐसा दर्द, जो शुचिता की चुप्पी के पीछे चीख रहा था।

अब शुचिता के दर्द ने उसके ससुराल वालों को भीतर तक झकझोर दिया था।

वे खुद को ही गुनहगार समझने लगे—मानो शुचिता की हर आँसू की बूंद उनकी ही किसी कमी का परिणाम हो।

वे फिर से उसके चेहरे पर वही मासूम मुस्कान, वही खिलखिलाहट और वही उजाला देखना चाहते थे, जो कमलेश से शादी के बाद उसके चेहरे पर हमेशा बिखरा रहता था।

धीरे-धीरे, शुचिता उनके लिए बहू नहीं, बेटी बन गई।

उन्होंने तय किया कि इस बच्ची के टूटे हुए जीवन को फिर से सँवारा जाना चाहिए।

और इसी सोच के साथ वे उसके लिए एक सुयोग्य, सुशील और वफादार वर की तलाश करने लगे— कोई ऐसा जो उसके जीवन में फिर से भरोसा, सुरक्षा और खुशी लौटा सके।

अब शुचिता को ससुराल में वैसा ही लाड़-प्यार मिलने लगा,

जैसे कोई अपने घर की बेटी को देता है—

संभाल, स्नेह, और उसके टूटे दिल को धीरे-धीरे जोड़ने की अनगिनत छोटी-छोटी कोशिशें।

आख़िरकार वह दिन भी आ ही गया, जब शुचिता के लिए योग्य वर की तलाश पूरी हो गई। जिस घड़ी का इंतज़ार सब कर रहे थे, वह जैसे अचानक उनकी आंखों के सामने आ खड़ी हुई।

शुचिता के ससुराल वाले उसकी शादी की तैयारियाँ ठीक उसी प्यार और धूमधाम से करने लगे, जैसे कोई अपने घर की बेटी के लिए करता है।

शादी के कार्ड छपे, रिश्तेदारों और परिचितों को बांटे गए। घर को नए जोश और उत्साह से सजाया जाने लगा—दीवारें, आंगन, कमरों की हर कोठरी मानो एक नए आरंभ का स्वागत कर रही थी।

सजावट वालों से लेकर बैंड-बाजे वालों तक, सबको अपना-अपना काम सौंप दिया गया था।

शुचिता की मुस्कान लौट आए, उसकी आंखों में फिर से चमक दिखाई दे— इससे बढ़कर और किसी को कुछ नहीं चाहिए था।

इसलिए ससुराल वाले उसकी शादी में ज़रा-सी भी कमी नहीं रहने देना चाहते थे।

हर तैयारी में उनका प्यार, उनकी चिंता और उनकी भावनाओं का भार साफ झलक रहा था— मानो वे सच में अपनी ही बेटी को विदा करने की तैयारी में हों।

विदाई का समय करीब आ रहा था। घर के आंगन में हल्की-सी सरसराहट थी—फूलों की खुशबू, पंडाल की रोशनी और बैठे-बैठे रो पड़े चेहरे। शुचिता, जो कभी इस घर में बहू बनकर आई थी, अब इस घर से एक बेटी की तरह विदा हो रही थी।

दुल्हन बने हुए उसकी आँखों में मिश्रित भावनाएँ तैर रही थीं— एक ओर नया जीवन शुरू होने की खुशी, तो दूसरी ओर इस घर से बिछड़ने का दर्द, जिसने उसे टूटने से बचाया, संभाला, सहारा दिया।


ससुराल वाली महिलाएँ उसे गले लगाकर रो पड़ीं। उसकी सास ने हाथ पकड़कर कहा— “बेटी, खुश रहना… और हमेशा यह घर तुम्हारा ही रहेगा।” 

शुचिता की आँखें भर आईं।

कभी सोचा भी नहीं था कि जिन लोगों के साथ उसने इतने दर्द भरे दिन बिताए, वही लोग एक दिन उसे इतनी मोहब्बत से विदा करेंगे।

जब बारात आगे बढ़ने लगी, तो ससुर ने धीमी आवाज़ में कहा—

“शुचिता, आज हम तुम्हें बेटी मानकर विदा कर रहे हैं।

जैसे खुशी चाहिए, वैसे ही आशीर्वाद भी… बस तू मुस्कुराती रहना।”

उनके शब्द सुनकर वहाँ मौजूद हर व्यक्ति भावुक हो गया।

शुचिता के चरण छूकर आशीर्वाद देने वाली महिलाएँ भी फुसफुसाकर कह रही थीं—

“अरे, आज यह लड़की नहीं जा रही… यह घर का एक हिस्सा विदा हो रहा है।”

गाड़ी के दरवाज़े बंद होने लगे।

फूल बरसाए गए।

सबकी आँखों में आँसू और दिल में दुआ थी।


और फिर, गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ गई—

मानो शुचिता के जीवन का एक अध्याय बंद हुआ हो

और एक नया अध्याय शांत, सम्मान और प्रेम के साथ शुरू हुआ हो।


शुचिता का नया जीवन

नए घर की दहलीज़ पर कदम रखते हुए शुचिता के मन में एक डर भी था और उम्मीद भी।

जैसे कोई घायल परिंदा दुबारा उड़ना तो चाहता है, लेकिन पहली ही उड़ान में टूट जाने का डर उसे घेर लेता है।

लेकिन जैसे ही शुचिता अंदर पहुँची, उसके नए ससुराल वालों ने

प्यार, आदर और मुस्कान से उसका स्वागत किया—

मानो वे उसे पहले से ही अपने घर का हिस्सा मानते हों।

💛 नया पति, नई समझ, नई शुरुआत

जिस वर से उसकी शादी हुई थी,

वह शांत स्वभाव का, विनम्र और बेहद समझदार व्यक्ति था।

शुचिता की आँखों में झुका हुआ संकोच देखते ही उसने धीरे से कहा—

“तुम्हें किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं…

जो बीत गया, उसे बीत जाने दो।

अब हम मिलकर एक नई ज़िंदगी शुरू करेंगे।”

उसके इस वाक्य ने शायद पहली बार शुचिता के मन की गहराइयों में छुपे डर को कुछ हद तक कम कर दिया।

उसे लगा जैसे किसी ने उसके टूटे दिल पर मरहम लगा दिया हो।

🏡 ससुराल में बेटी से भी बढ़कर जगह

धीरे-धीरे उसने देखा कि इस घर में उसे बहू नहीं, सचमुच एक बेटी की तरह माना जा रहा है—

कोई बोझ नहीं, कोई मजबूरी नहीं।

उसकी सास सुबह-सुबह उसके कमरे में आकर पूछ लेती—

“बेटी, रात ठीक से सोई? कुछ चाहिए तो बताना।”

और उसके पति की हर बात में सम्मान और सहजता झलकती थी।

🌷 धीरे-धीरे लौटने लगी रंगत

नए घर में कुछ ही महीनों बाद शुचिता के चेहरे पर फिर से वह हल्की-सी हँसी लौटने लगी, जो कई सालों से कहीं खो गई थी।

उसके हाथों की मेंहदी फिर से सजने लगी, उसके पलों में फिर से बातों की गर्माहट लौट आई।

कभी जो आँसुओं में भीगकर रह जाने वाली लड़की थी, अब अपने जीवन में धीरे-धीरे विश्वास, सुकून और खुशियों का नया अध्याय लिख रही थी।


🌟 सबकी दुआएँ रंग लाई

जिस घर ने उसे सांत्वना दी,

जिस परिवार ने उसे संभाला,

जिस पति ने उसे स्वीकारा—

उन सबके स्नेह ने उसके जीवन को

पूरी तरह बदल दिया।


अब शुचिता सिर्फ जी नहीं रही थी—

वह खिल रही थी।

जैसे बरसों बाद किसी सूखे पेड़ पर

पहली बार कोमल-सी हरी पत्ती उभर आए।

यह सच्ची घटना पर आधारित है। घटना राजस्थान केडुंगरपुर जिले के पीपलागुंज गांव की है। 


कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जरूर बताइए। पढ़ने के लिए धन्यवाद.....

-बहू का कन्यादान: रिश्तों की नई मिसाल (कहानी); Bahu Ka Kanyadaan (Kahani) II SejalRaja II 

बेईमान चायवाला – जिगर की दर्दभरी कहानी(कहानी); Beiman Chaiwala-Jigar Ki Dardbhari Kahani II SejalRaja II

खैनी (कहानी) II Khaini (Kahani, Story)







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सोमवार, 27 जनवरी 2025

खैनी (कहानी) II Khaini (Kahani, Story)

 खैनी (कहानी) II Khaini (Kahani, Story) 


शाम के 5 बज रहे हैं| पटना रेलवे स्टेशन पर काफी भीड़ है| भागम भाग मची हुई है| कुछ लोग ट्रेन से उतर रहे हैं| कुछ लोग ट्रेन पर चढ़ रहे हैं| कुछ लोग ट्रेन आने का इंतजार कर रहे हैं| कुछ लोग अपनी ट्रेन खुलने का इंतजार कर रहे हैं|

तभी स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर कुमार बुक स्टॉल के पास एक महिला के चीखने की आवाज आई| महिला की उम्र यही कोई 50 साल की होगी| वह एक आदमी की तरफ इशारा कर कर कह रही थी कि उसने मेरी इज्जत ले ली, दौलत ले ली, मेरा धर्म नष्ट कर दिया, मेरा मंगलसूत्र ले लिया, पर्स में रखे मेरे पूरे पैसे ले लिये|

महिला के इस अचानक से चीख चीखकर आरोप लगाने पर वह आदमी सकते में आ गया| अचानक से वहां पर भीड़ इकट्ठा हो गई| पुलिस भी आ गई| आदमी की उम्र करीब 60 साल की होगी| आदमी लंबे समय से स्टेशन पर जुता पॉलिश करने का काम करता आ रहा है| इस वजह से स्टेशन पर सामान बेचने वाले, पुलिस सब उस आदमी को अच्छे से जानते हैं|

जो लोग उस आदमी को जानते हैं, वो लोग उसकी बचाव में खड़े हो गये| पुलिस वाले भी आदमी का पक्ष ले रहे हैं| लेकिन, महिला आरोप लगा रही है, तो पुलिस को उस आदमी के खिलाफ कार्रवाई तो करनी है|

पुलिस आरोपी आदमी को स्टेशन पर बने पुछताछ कमरे में आरोप लगाने वाली महिला और आरोपी आदमी को लेकर जाती है| पुलिस आरोपी आदमी से पूछताछ करना शुरू करती है|

आदमी जब पुलिस से अपनी बात बताना शुरू करता है, तो सब लोग हैरान रह जाते हैं| आप भी उस आदमी की सफाई सुनकर चौंक जाएंगे|

आदमी ने कहा कि उस महिला ने उससे खैनी मांगी| खैनी मांगने और आरोप लगाने महिला भी स्टेशन पर घूम घूम कर सामान बेचा करती है|

जैसे ही आरोपी आदमी ने उस महिला को खैनी दिया, वैसे ही उस महिला ने आदमी पर तरह तरह का आरोप लगाने लगी| कहने लगी कि उसने मेरी इज्जत ले ली, दौलत ले ली, मेरा धर्म नष्ट कर दिया, मेरा मंगलसूत्र ले लिया, पर्स में रखे मेरे पूरे पैसे ले लिये|

पुलिस ने दोनों की बात सुनी| पुलिस को अब विस्तार से तहकीकात करके दोषी पर कार्रवाई करके उसे जेल भेजने की बारी है| पुलिस आरोप लगाने वाली महिला के पति को बुलाती है|

महिला ने पूछताछ में बताया कि वह स्टेशन के बगल में एक किराये के मकान में रहती है| पुलिस ने महिला के मकानमालिक को भी पूछताछ के लिए बुलाया|

आरोपी आदमी ने जब महिला के मकानमालिक को देखा, तो झट से पहचान गया| आरोपी आदमी भी अपना सामान उस महिला के मकानमालिक के घर पर रखता है|

मकानमालिक भी पुलिस के पास आरोपी आदमी को देखकर हैरान रह गया| मकानमालिक को जब पुलिस ने आरोप आदमी का आरोप बताया, तो मकानमालिक को विश्वास नहीं हुआ| मकानमालिक ने पुलिस के सामने भी आरोपी आदमी का बचाव किया|

अब पुलिस कशमकश में थी कि करें तो क्या करें| तभी पुलिस ने महिला के पति से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी| तब जाकर पति ने एक ऐसा खुलासा किया कि वहां पर मौजूद सभी लोग अंदर तक हिल गये|

पति ने कहा कि उसकी पत्नी यानी आरोप लगाने वाली महिला अनापशनाप आरोप लगाकर आदमी को ब्लैकमेल करके उनसे पैसे ऐंठती है और ये कोई पहला मामला नहीं है, जब वह ऐसा कर रही है|

फिर क्या था| पति के इस खुलासे के बाद पुलिस ने आरोप लगाने वाली महिला को गिरफ्तार करके छह महीने के लिए जेल भेज देती है|







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3-अमीर बनने के लिए पैसों से खेलना आना चाहिए। पैसों से खेलने की कला सीखने के लिए पढ़िये...

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6-इंसान के पास संसाधन या मार्गदर्शन हो या ना हो, सपने जरूर होने चाहिए। सिर्फ सपने के सहारे भी कामयाब होने वालों की दुनिया में कमी नहीं है। - 'जब सपने बन जाते हैं मार्गदर्शक' -

7-बेटियों को बहादुर बनने दीजिए और बनाइये, ये समय की मांग है,  "बेटी तुम बहादुर ही बनना " -

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रविवार, 26 जनवरी 2025

जमालगोटा (कहानी) ll Jamalgota ( Story)

गर्मी का दिन था| रात के 11 बज गए थे| शादी करने के लिए बाराती लेकर लड़की के घर पहुंचे हुए लड़के वालों पर अब अपनी ही जिद भारी पड़ने लगी थी| भूख से सब का बुरा हाल था| बाराती झारखंड की राजधानी रांची से बिहार की मोक्ष भूमि गया के एक गांव में गई हुई थी| 



दरअसल, बाराती वालों ने तय किया हुआ था कि जब तक लड़की वाले की तरफ से और ज्यादा दहेज नहीं मिलेगा, तब तक वो लोग ना तो खाना खाएंगे और ना ही लड़की को विदा करके ले जाएंगे|


लड़के वाले दबाव डालकर लड़की वाले से कुछ और पैसा ऐंठना चाहते थे| लड़के वाले लड़की वालों को मजबुर समझकर उनसे ब्लैकमेल करना चाहते थे|


लड़के वाले इस उम्मीद में थे कि लड़की वाले ना केवल खाना खाने के लिए मनाने आएंगे, बल्कि दहेज के लिए मांगे गए पैसे भी लेकर आएंगे, लेकिन लड़की वाले ने उनके साथ वो किया, जिसकी कल्पना लडंके वाले ने सपने में भी नहीं की होगी|


लड़की वाले ने लड़के वाले की जिद और मांग के आगे झुकने से इंकार कर दिया| लड़की वाले ने लड़के वालों को खाने के लिए मानमनौव्वल की और ना ही शादी की रस्म पूरी करने के लिए अनुरोध किया|

अब क्या था| लड़के वाले की उम्मीदों पर पानी फिरने लगा था| रात के 11 बजते बजते लड़के वाले के पेट में चुहे दौड़ने लगे थे| लड़की वाले उनको खाने के लिए पूछ ही नहीं रहे थे| बाराती में आए ज्यादातर लोगों को अगले ही वापस ड्यूटी पर भी जानी थी| इसलिये शादी की रस्म में देरी से उनमें बेचैनी थी| गर्मी की वजह से खाना भी खराब हो रहा था|

लड़की वाले की तरफ से ग्रीन सिग्नल नहीं मिलता देख अंत में हारकर लड़के वाले ने अपनी जिद छोड़ दी| अब लड़के वाले खाना खाने की तरफ बढ़े| लड़के वाले खाना खाना शुरू किया| लेकिन, ये क्या बारी बारी से सबको पैखाना होना शुरू हुआ| पेट गुड़गुड़ाना शुरू हुआ|

आप सोचिये, ऐसा क्यों हुआ होगा? आपको लग रहा होगा कि ऐसा भोजन खराब होने की वजह से हुआ होगा| लेकिन, ऐसा नहीं है| दरअसल, लड़के वाले की परेशान करने वाली जिद से लड़की वाले परेशान हो गए थे और बदला लेने पर उतारू थे| लड़की वाले ने पूरा भोजन में ही जमालगोटा मिला दिया था|

भोजन और शादी की रस्म पूरी होने के बाद बारात वापस गया से रांची लौटी| लेकिन, लड़के वालों के लिए वापसी आसान नहीं रही| भर रास्ता लोगों को बाराती बस रूकवा रूकवा कर पैखाना करने के लिए जाना पड़ रहा था|







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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

Audio Kahani:Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II

सेजल बिन सब सून (कहानी) Sejal Bin Sab Soon (Story) मेरा नाम रजनीश कांत है| मैं मुंबई में पत्रकार हूं| मुझे कहानी, कविता, गाना लिखने और सुनाने का शौक है। आज मैं अपनी लिखी कहानी "सेजल बिन सब सून" आप सबको सुना रहा हूं। कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जाकर जरूर लिखिएगा। आपसे गुजारिश है कि चैनल को जल्द से जल्द सब्सक्राइव कर लें। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।









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शनिवार, 8 जून 2024

सेजल बिन सब सून (कहानी); Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II





सेजल बिन सब सून (कहानी); Sejal Bin Sab Soon (Story)II SEJALRAJA II सेजलराजा II


शाम के करीब साढ़े छह बज रहे हैं। गर्मी का दिन है। तपते सुरज की तपिश धीरे धीरे कम हो रही है, सूर्य भी अब अस्त हो रहा है, सुरज की लालिमा अब खत्म हो रही है।  इन सबके बीच मुंबई से सटे नालासोपारा पश्चिम का सरकारी उद्यान वृंदावन गार्डेन में चहल-पहल है। बच्चे, बुढ़े, जवान, मर्द, महिलाएं सब के सब कुदरत का आनंद लेने में मशगूल हैं। कुछ दोस्तों संग बेंच पर बैठकर गपशप कर रहे हैं, कुछ वॉक कर रहे हैं. कुछ वीडियो बना रहे हैं, कुछ व्यायाम कर रहे हैं, कुछ डांस प्रैक्टिस कर रहे हैं, कुछ परिवार के साथ बैठकर नाश्ता कर रहे हैं, कुछ अलग अलग खेल खेल रहे हैं। कह सकते हैं कि पूरी फिजा में रोमानियत है। 

गार्डेन के सारे पीपल, आम, नीम, नारियल, अमरूद, आम, सारे फूलों के पेड़ हवा संग मस्तियां कर रहे हैं, पत्ते भी मदमस्त होकर झूम रहे हैं, रंग-बिरंगे फूलों का भी क्या कहना, वो सब भी अपने मनमोहक डांस से सबको रोमांचित होने का चांस दे रहे हैं। 

भले ही वृंदावन गार्डेन के पीपल, आम, नीम, नारियल, अमरूद, आम, सारे फूलों के पेड़ हवा संग मस्तियां कर रहे हैं, लेकिन उनमें एक उदासी छाई हुई सी लग रही है। 

पत्ते भी मदमस्त होकर झूम रहे हैं, लेकिन उनमें किसी तरह का उत्साह नहीं दिख रहा है। 

रंग-बिरंगे फूल भले ही अपने मनमोहक डांस से सबको रोमांचित होने का चांस दे रहे हैं, लेकिन उनमें वो जोश नहीं दिख रहा है, जो हमेशा से दिखता है।  

मैंने हवा संग मस्तियां कर रहे पेड़ों से पूछा- तुमलोग मस्तियां तो कर रहे हो, लेकिन तुम लोगों में उदासी क्यों छाई है? 

फिर, मैंने मदमस्त होकर झूम रहे पत्तों से पूछा- तुम लोगों में किसी तरह का उत्साह क्यों नहीं दिख रहा है? 

मैंने मनमोहक डांस कर रहे फूलों से भी पूछा- तुम लोगों में आज वो जोश नहीं दिख रहा है, जो हमेशा से दिखाई देता है। 

मुझसे पेड़ों ने, पत्तों ने, फूलों ने एक स्वर में कहा- अरे, यार पिछले तीन हफ्ते से गार्डेन में हंसती-मुस्कराती इतराती खूबसूरत सबकी चहेती सेजल नहीं आ रही है। मैंने उनके जवाब पर चौंकते हुए पूछा- ये सेजल कौन है ? हर दिन सुबह- शाम गार्डेन में इतने सारे लोग आते हैं, फिर केवल सेजल के नहीं आने से तुम लोगों में इतमी मायूसी क्यों है? 

तब पेड़ों,पत्तों, फूलों ने मुझसे कहा- तुम्हें नहीं पता है क्या। सिर्फ हम लोग ही नहीं, गार्डेन में शाम को आने वाले सारे लोग सेजल के तीन हफ्ते से नहीं आने से मायूस हैं, उदास हैं, बेचैन हैं। मैंने उनकी बातों पर हैरान होते हुए कहा- मतलब, वृ़दावन गार्डन में 'सेजल बिन सब सून' ऐसा है क्या? सबने एक स्वर में मुझसे कहा- बिल्कुल, तुम सही समझे। 

मैंने कहा, तुम सब को कैसे पता, कि गार्डेन में आने वाले सारे लोग सेजल के नहीं आने से मायूस हैं? तब सबने कहा, वो सामने वाला दो बेंच देख रहे हो।  गार्डन में टहलने वाले गोल रास्ते में लोगों के बैठने के लिए कई बेंच रखे हुए हैं, उन्हीं में से उन सब ने दो बेंच की तरफ इशारा किया। 

मैंने कहा- यहां तो बहुत सारे बेंच रखे हुए हैं, लेकिन तुम सब केवल दो बेंच की ही बात क्यों कर रहे हो? मेरे इस सवाल पर गार्डन के पेड़, पत्ते और फूलों ने जो कहा, उससे मैं क्या, कोई भी चौंक जाएगा। मैंने कहा, ऐसा क्या है आखिर। 

तब सबने मुझसे कहा। उन दोनों बेंच पर शाम को गार्डन के खुलने से लेकर गार्डन के बंद होने तक यानी शाम के 4 बजे से लेकर 8 बजे तक 75-80 साल के 7-8 बुजुर्ग बैठते हैं। और सबको हर दिन 30-35 साल की शादी-शुदा सेजल का इंतजार रहता है। उन सब ने ही मुझसे कहा कि, सेजल जब भी गार्डन आती है शाम साढ़े 6 बजे के करीब आती है। 

कुछ देर घूमती है और कुछ देर बेंच पर बैठ कर खुले आसमान तले आजादी का आनंद उठाती है और फिर अपने घर चली जाती है। हमेशा अकेली रहती है। ज्यादातर समय अपने मोबाइल पर लगी रहती है। केवल एक महिला के साथ अक्सर दिखाई देती है सेजल । 

मैंने पूछा, कि गार्डन में बहुत सारे लोग आते हैं, लेकिन तुम सब को कैसे पता कि जो 75-80 साल के 7-8 बुजुर्ग हैं, उनको सेजल का ही इंतजार रहता है। तब सबने कहा-सेजल के आने तक उन सभी का ध्यान अपनी अपनी घड़ियों और गार्डन के गेट पर रहता है। जैसे ही सेजल गार्डन में प्रवेश करती है और उन बुजुर्गों की निगाहों से गुजरती है, तो उनमें एक अजीब सी हलचल होने लगती है। सभी बुजुर्ग आंखों ही आंखों में सेजल के आने की खुशी जाहिर करते हैं और सेजल के विपरीत दिशा से घूमना शुरू कर देते हैं। मैंने चौंकते हुए कहा-अच्छा, ये बात है। 

सेजल पर गलत निगाह रखने वाले उन बुजुर्गों के बारे में पेड़, पत्तों, फूलों ने एक बात और जो मुझसे कहा, उससे मेरे पैरों तली जमीन घिसक गई। एक पेड़ ने कहा- जब एक दिन सेजल काफी देरी से गार्डन में आई तो सारे बुजुर्ग काफी बैचेन थे। 

जब सेजल ने घूमना शुरू किया, तो उन 7-8 बुजुर्गों में से दो बुजुर्गों ने भी सेजल के विपरीत दिशा से घूमना शुरू किया और जब वो दोनों सेजल के बगल से गुजर रहे थे, तो उनमें से एक ने दूसरे बुजुर्ग से कहा कि-ये महिला काफी इंतजार करवाती है! मैंने चौंकते हुए कहा, कि ओहो, ऐसी बात है। 

 मैंने उन सबसे कहा, कि ये तो बहुत गंभीर बात है। सेजल के बाप-दादा की उम्र के बुजुर्गों की इतनी गंदी निगाह, उन बुजुर्गों को तो शर्म आनी चाहिए, अपनी ऐसी घटिया नीयत पर। 

फिर, मैंने पेड़ों, पत्तों, फूलों से कहा कि ये तो रही 7-8 घटिया बुजुर्गों की बात, जो सेजल पर गलत नीयत रखते हैं। ऐसे लोगों को तो सार्वजनिक जगहों पर एंट्री पर ही रोक लगा देनी चाहिए। अपने बुढ़ापे के गलत फायदा उठाने वालों को बहिष्कार करना चाहिए। तो, अब बताओ तुम सब और कैसे कह सकते हो कि इस गार्डन में सेजल बिन सब सून रहता है। 

तब उन सब ने कहा कि हम सबने गार्डन आने वाली की महिलाओं को सेजल की खूबसूरती, उसके चलने, बात करने, मुस्कराने की अदाओं पर जलते देखा है। यही नहीं, गार्डन में आने वाले बहुत सारे बच्चे भी सेजल के आकर्षण में डूबे दिखाई देते हैं। 

मैंने मन ही मन सोचा- सेजल को लेकर गार्डन में जब इतनी दीवानगी है, तो सचमुच हम कह सकते हैं कि- सेजल बिन सब सून। 


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शुक्रवार, 7 जून 2024

Kahani Time: Kshitij Ke Paar by ChandraKanta Dangi

Kahani Time: Kshitij Ke Paar by ChandraKanta Dangi ऑडियो कहानी टाइम- 'क्षितिज के पार'- चंद्रकांता दांगी मेरा नाम चंद्रकांता दांगी है। मैं गृहिणी हूं और लेखिका भी हूं। मुझे अपनी लिखी कहानी आपको सुनाना पसंद है। मैं अपने अनुभवों को, अपने संस्मरण को आपके साथ साझा करना चाहती हूं। मेरी किताब 'बयार' प्रकाशित हो चुकी है। आज मैं आपको अपनी लिखी कहानी 'क्षितिज के पार' आपके साथ साझा कर रही हूं। मेरी कहानी सुनने के लिए इस चैनल  को सब्सक्राइव कर लीजिए। कहानी को ज्यादा से ज्यादा  शेयर कीजिए। तो, चलिये मेरी कहानी सुनिये-


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-टिकट का चक्कर (कहानी); Ticket Ka Chakkar Kahani) II SEJALRAJA II सेजलराजा II







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मंगलवार, 4 जून 2024

टिकट का चक्कर (कहानी); Ticket Ka Chakkar Kahani) II SEJALRAJA II सेजलराजा II



टिकट का चक्कर (कहानी); Ticket Ka Chakkar Kahani) II SEJALRAJA II सेजलराजा II



अब अजीत के सामने सिवाय झुंझलाहट के, कोई और उपाय नहीं था। मुंबई के सीएसटी स्टेशन से बिहार के पटना जाने वाली ट्रेन राजेन्द्रनगर एक्सप्रेस के आरक्षण का अंतिम चार्ट तैयार हो चुका था। इस चार्ट को देखकर अजीत के पैरों तले की जमीन खिसक गई। सीट के कन्फर्मेंशन के लिए अजीत आश्वस्त था...अंतिम आरक्षण चार्ट के तैयार होने से कुछ समय पहले तक ट्रेन में सीट को लेकर आश्वस्त और अपने होम टाउन पहुंचने के ख्याल से उत्साहित अजीत की सारी खुशियां मानों गायब हो चुकी थी, चेहरे की मुस्कान यकायक छूमंतर हो चुकी थी। अजीत की अब तनिक भी इच्छा सीएसटी स्टेशन पर रुकने की नहीं रही। हालांकि अजीत ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी थी।

अजीत ने होम टाउन जाने के लिए टिकट तो लिया था ही...दफ्तर से सात दिनों की छुट्टी भी ली थी...ऐसे में होम टाउन जाने के लिए कोई न कोई उपाय करने का मन बनाया। अजीत ने अपने उस दोस्त से बात की, जिसने ट्रेन में सीट कन्फर्म कराने का भरोसा दिया था। दरअसल, गलती खुद अजीत की थी, उसके दोस्त की नहीं। अजीत ने ही अपने दोस्त से टिकट कन्फर्म कराने का अनुरोध किया था। साथ ही अजीत के उस दोस्त ने आगाह भी किया था कि टिकट शायद ही कन्फर्म हो...हालांकि इससे पहले टिकट के कन्फर्म होने में कभी कोई परेशानी नहीं आई थी। लेकिन शायद रेलवे के नियम में कुछ बदलाव कर दिया गया था जिससे रेलवे अधिकारी के लिए भी टिकट कन्फर्म कराना आसान नहीं रहा।

कोई और समय होता तो टिकट शायद कन्फर्म भी हो जाता..लेकिन पीक सीजन था। दशहरा, दीपावली, छठ का सीजन चल रहा था...इस दौरान बिहार और उत्तरप्रदेश जाने वाली ट्रेनों में पांव रखने की भी जगह नहीं रहती है...क्या स्लीपर बोगी, क्या सामान्य श्रेणी के बोगी और क्या एसी बोगी...सारी की सारी सीटें भर जाती है...इस फेस्टिव सीजन में...।

इस दौरान वैसे लोग खुशकिस्मत होते हैं जिन्हें आरक्षित सीट मिल जाती है...जो लोग आरक्षित सीट से वंचित रहते हैं, उनकी कोशिश रहती है कि किसी भी तरह से ट्रेन में घूसने भर की जगह मिल जाए...। ऐसी बात नहीं है कि अजीत ट्रेन में घूस नहीं सकता था...वो भी दूसरे लोगों की तरह ट्रेन में घूस तो सकता था लेकिन फिर करीब तीस घंटे का सफर आसान नहीं था।

खैर, ये तो रही अजीत के टिकट कन्फर्म कराने के अनुरोध की बात, लेकिन जब टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो बेचारा
पशोपेश में पड़ गया। कहते हैं न कि उम्मीद पर दुनिया टिकी है...अजीत ने अपने उस अजीज दोस्त से, जिसने टिकट कन्फर्म कराने का भरोसा दिया था, एक बार फिर से बात की...इस उम्मीद में कि शायद कुछ बात बन जाए। अजीत ने कहा, भाई, टिकट तो कन्फर्म नहीं हो पाया, अब क्या किया जाए ? अजीत के उस दोस्त ने ट्रेन के टीटीई से बात कर कुछ जुगाड़ करने की सलाह दी। अपने यहां जुगाड़तंत्र सबसे कामयाब नुस्खा है...कोई भी काम करवाना हो, उसके नियम, कानून, शर्तें बाद में देखो, पहले जुगाड़ का प्रबंध करो...अगर आप ऐसा करते हैं तो समझ लीजिए आपका काम हो गया।


लेकिन, रेलवे प्लेटफॉर्म पर अजीत का मन अब उखड़ चुका था..अजीत के साथ दिक्कतये भी थी कि वह जुगाड़ करने में अनाड़ी है...इसलिए उसने अपने दोस्त की सलाह को नजरअंदाज कर स्टेशन से बाहर निकलना ही बेहतर समझा। हालांकि होम टाउन जाने पर अब भी अजीत अड़ा हुआ था...अजीत के सामने अब फ्लाईट से पटना जाने का विकल्प बचा था। अजीत पहले भी कई मौकों पर फ्लाईट से पटना जा चुका है और उसके लिए फ्लाईट से जाना कोई नई बात नहीं थी। इतना सब होते-होते रात के दस बज चुके थे।


अजीत सीधे दफ्तर से रेलवे स्टेशन आया था...सुबह सात बजे से शाम के चार बजे तक उसने दफ्तर में काम किया। फिर सीधे स्टेशन चला आया। अजीत पर थकान हावी होने लगी थी। थकान होना लाजिमी भी था। अगर ट्रेन में उसकी सीट कन्फर्म रहती तो ट्रेन में वह पैर पसारकर आराम फरमाते रहता...

थक हारकर अजीत ने जेट एयरवेज के कस्टमर केयर से बात की...लेकिन उसे यहां से भी निराशा हाथ लगी। जेट
एयरवेज के पटना जाने वाली फ्लाईट में तो उस दिन कोई भी सीट नहीं थी और अगले दिन की फ्लाईट में भी एक ही सीट मौजूद थी। इतना पर भी होम टाउन जाने को लेकर अजीत का मनोबल काफी ऊंचा था लेकिन जब जेट एयरवेज के कस्टमर केयर ने फ्लाईट का किराया बताया तो अजीत के तो होश ही उड़ गए।

आम दिनों में मुंबई से पटना के लिए जो 6-8 हजार रुपए प्रति शख्स रहता है वह उस दिन के लिए पच्चीस हजार रुपए था। अजीत ने पच्चीस हजार रुपए चुकाकर होम टाउन जाने का विचार छोड़ दिया। अब अजीत के सामने होम टाउन जाने का कोई और विकल्प नहीं बचा था और मुंबई के अपने घर में लौटने के अलावा उसके सामने कोई और चारा नहीं था।

इन सब दिक्कतों से गुजरने के बाद अजीत का मन खट्टा हो गया था और मुंबई के अपने फ्लैट में जाने की उसकी इच्छा नहीं हो रही थी। अजीत ने तब अपने एक और अजीज दोस्त को कॉल किया। अजीत के दोस्त ने उसका कॉल रिसीव किया और उसे घर जाने की शुभकामना दी...लेकिन उसे पता नहीं था कि अजीत की सीट कन्फर्म नहीं हुई है और वो वापस अपने फ्लैट लौट रहा है। अजीत ने कुछ दिन पहले ही अपने उस अजीज दोस्त से घर जाने की जानकारी दी थी...इसलिए अजीत को उसने हैप्पी जर्नी कहकर शुभकामना दी थी।


अजीत ने अपने दोस्त को टिकट कन्फर्म न होने की जानकारी दीऔर उस रात उसी के घर में रुकने की गुजारिश की। अजीत के उस दोस्त ने कहा कि मेरे घर पर आ जाओ, कोई दिक्कत नहीं होगी। वैसे भी मैं घर पर अकेला ही हूं....। अजीत का वह दोस्त विरार स्टेशन के पास रहता है...अजीत के उस दोस्त ने विरार स्टेशन पर आकर उसे रिसीव करने का भरोसा दिया। करीब चालीस मिनट के बाद अजीत लोकल ट्रेन से विरार रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन से उतरकर पहले तो अजीत ने प्लेटफॉर्म पर अपने दोस्त को इधर, उधर ढूंढा, लेकिन अजीत का वह दोस्त कहीं नहीं दिखा। अब अजीत ने अपने दोस्त को कॉल किया। हद तो तब हो गई जब दो बार कॉल करने के बाद भी अजीत के उस दोस्त ने कोई रिस्पांस नहीं दिया।


इतना सबकुछ होते-होते रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे। अब अजीत बिल्कुल पूरी तरह से थक चुका था और अपने फ्लैट में जाना ही उसे मुकम्मल जान पड़ा। इतना सब कुछ होने के बाद अजीत ने भगवान को शुक्रिया किया और अपने फ्लैट पर लौट आया। अपने फ्लैट में आकर में आकर अजीत नींद की आगोश में चला गया। अजीत की आंख ही लगी थी कि विरार के उसके दोस्त ने कॉल करना शुरू किया। अजीत ने उसका कॉल रिसीव नहीं किया। आखिरकार अजीत का वह दोस्त उसके फ्लैट में आ पहुंचा। अजीत ने अपने दोस्त का स्वागत किया और सोने के लिए कहा।


अजीत को कुछ समझ में नहीं आया कि उस रात उसके साथ जो कुछ हुआ आखिरकार उसका दोषी कौन है ? अजीत के लिए उसका अजीज दोस्त दौलत से कम नहीं होता है। अजीत ने नियति को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए मान लिया कि ईश्वर के इस 'न' में उसके लिए बेहतरीन 'हां' छुपा हुआ हो सकता है...अजीत ने उस रात की परेशानी के लिए सबको धन्यवाद दिया और मान लिया कि जिंदगी में कहानियां बनने कि लिए कुछ न कुछ होना जरूरी है...







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गुरुवार, 23 मई 2024

Kahani Time: KauaaDol by ChandraKanta Dangi

Kahani Time: KauaaDol by ChandraKanta Dangi ऑडियो कहानी टाइम- 'कउआडोल'- चंद्रकांता दांगी मेरा नाम चंद्रकांता दांगी है। मैं गृहिणी हूं और लेखिका भी हूं। मुझे अपनी लिखी कहानी आपको सुनाना पसंद है। मैं अपने अनुभवों को, अपने संस्मरण को आपके साथ साझा करना चाहती हूं। मेरी किताब 'बयार' प्रकाशित हो चुकी है। आज मैं आपको अपनी लिखी कहानी 'कउआडोल' आपके साथ साझा कर रही हूं। मेरी कहानी सुनने के लिए इस चैनल  को सब्सक्राइव कर लीजिए। कहानी को ज्यादा से ज्यादा  शेयर कीजिए। तो, चलिये मेरी कहानी सुनिये-


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शुक्रवार, 1 मार्च 2024

Apno Ki Kaisi Khamosi: अपनों की कैसी खामोशी? (Kahani, कहानी)



अमित जैसे पक्के दोस्त के अचानक बदले व्यवहार ने दिवाकर को हिलाकर रख दिया था। दिवाकर ने अमित से ऐसी कटुतापूर्ण भाषा की उम्मीद तो क्या, सपने में भी कल्पना नहीं की थी। अमित जैसे ही दिवाकर से मुंबई के जुहू बीच पर मिला, दिवाकर पर उसने आरोपों की झड़ियां लगा दी। पर दिवाकर खामोश रहकर उन आरोपों को सुनता रहा।
दिवाकर की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिलता देख अमित भी चुप हो गया। कुछ देर तक दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत नहीं हुई। माहौल बोझिल सा हो गया था। माहौल को बेहतर बनाने के लिए दिवाकर ने पहल की। दिवाकर ने अमित से कहा, यार, तुम्हारी समस्या क्या है ?

मुंबई की फिजा में जहर घुलने लगा था। कभी साथ-साथ खेलने, पढ़ने, मौज-मस्ती करने वाले मराठी और गैर-मराठी के बीच अब दरार पैदा होने लगी थी। कुछ स्वार्थी नेताओं की मुहिम रंग लाने लगी थी।

दिवाकर सिंह और अमित पटेल जैसे लंगोटिया यार की दोस्ती को भी नेताओं की मुहिम ने बदरंग कर दिया।
मुंबई के एक इलाके में दिवाकर सिंह और अमित पाटील साथ-साथ पले-बढ़े और अपने कैरियर की शुरुआत भी एक साथ ही की। दिवाकर सिंह आज भले ही मुंबईया कहलाते हों, लेकिन इनकी फैमिली कोई सौ साल पहले ही मुंबई में आकर बस गई थी। अमित पाटील तो खांटी मराठी ही हैं।

मराठी और गैर-मराठी मुद्दे की वजह से मुंबई और महाराष्ट्र के कई शहरों का माहौल बदल चुका है। मराठियों में गैर-मराठियों के खिलाफ यह कहकर घृणा पैदा कर रहे हैं कि गैर-मराठी उनके काम करने के अवसर को छीन रहे हैं। महाराष्ट्र के लोगों का हक मार रहे हैं। 

ऐसा नहीं है कि इस तरह का झगड़ा कोई आज शुरू हुआ है बल्कि तीस-चालीस सालों से रह रहकर ऐसी आग जलती रही है। दिवाकर और अमित भी कई बार इस तरह के तमाशों का गवाह बन चुके हैं लेकिन बचपना और जवानी की दहलीज पर कदम रखते वक्त तक उनमें आपस में कोई मनमुटाव नहीं हुआ था। वो इन तमाशों को भी आम झगड़ा की ही तरह देखते थे, लेकिन अब इनमें समझदारी बढ़ने लगी और कुछ नेताओं की मराठी और गैर-मराठी संबंधी बेलगाम टिप्पणियों ने उनमें भी खटास पैदा करना शुरू कर दिया।

दिवाकर भी कई बार मराठीविरोधी अभियान के शिकार हुए, हालांकि वो भी अच्छी मराठी बोल लेते हैं, पूरी तरह से मराठी संस्कृति में रचे-बसे हैं। दिवाकर ने अपने दर्द को अपने खासमखास दोस्त अमित के सामने बयान किया, लेकिन इस समय तक अमित में वो भावना जन्म ले चुकी थी जिसने कुछ मराठियों के मन में गैर-मराठी खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के बाशिंदों के खिलाफ जहर भर दिया था। अमित भी दिवाकर के दर्द पर मरहम नहीं
लगा सका। हालांकि अब तक दिवाकर भी इस बात को अच्छी तरह से जान चुका था कि इस मामले में अमित से उसे कोई राहत नहीं मिलने वाली है।

फिर भी उसने साहस करके अमित से एक सवाल जरूर पूछा…अच्छा अमित, ये बताओ…जब मुंबई में बिहार और दूसरे प्रांत के लोग आकर जीवन-बसर कर रहे हैं, नौकरियों कर रहे हैं तो फिर जो लोग मुंबई के रहने वाले है खांटी मराठी हैं, वो क्यों नहीं कर सकते….., क्यों कुछ नेता उनके लिए स्थानीय नौकरियों में 80 परसेंट तक आरक्षण की मांग करते रहते हैं। वो क्यों मराठियों में ये दुष्प्रचार करते रहते हैं कि बिहारियों के कारण उनके काम करने के अवसर खत्म होते जा रहे हैं…..

अमित कुछ पल चुप रहा….

लेकिन दिवाकर को इसका कोई जवाब नहीं मिला। पर, अब सवाल पूछने की बारी अमित की थी। अमित ने दिवाकर से पूछा… मैं तो तेरे सवाल का जवाब नहीं दे पाया, लेकिन मुझे तुमसे एक बात पूछनी है… दिवाकर ने कहा, पूछो..

अमित ने कहा, अच्छा दोस्त, ये बताओ, बिहारी के बारे में कहा जाता है कि वो काफी कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं, प्रतिभाशाली होते हैं, बिहार में प्राकृतिक संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है, फिर भी तुम लोग बिहार में काम क्यों नहीं करते, क्यों नहीं बिहार को एक ऐसा प्रदेश बना देते हो, ताकि बिहारी को बाहर जाने की नौबत न आए, दूसरे प्रांत के लोगों की गालियां और लाठियां नहीं खानी पड़े।

दिवाकर के पास भी अमित के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था…… और शायद किसी नेता के पास भी दोनों के सवालों का जवाब मिलना मुश्किल है… क्योंकि उन्हें मुद्दा चाहिए, इलेक्शन के लिए, सत्ता पाने के लिए… आम नागरिक की भावना से उन्हें क्या-लेना…खुद बंदुकधारियों की छांव में दिन-रात रहने वाले इन नेताओं से उम्मीद भी कोई क्या कर सकता है…….

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बहू का कन्यादान: रिश्तों की नई मिसाल (कहानी); Bahu Ka Kanyadaan (Kahani) II SejalRaja II

“पापा… दादा… मम्मी… दादी…! आप सब मेरा कहा ध्यान से सुन लीजिए,”  कमलेश की आवाज में कंपन था, मगर आँखों में किसी गहरी पीड़ा का भार। “आज से शुचि...