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शुक्रवार, 1 मार्च 2024

Apno Ki Kaisi Khamosi: अपनों की कैसी खामोशी? (Kahani, कहानी)



अमित जैसे पक्के दोस्त के अचानक बदले व्यवहार ने दिवाकर को हिलाकर रख दिया था। दिवाकर ने अमित से ऐसी कटुतापूर्ण भाषा की उम्मीद तो क्या, सपने में भी कल्पना नहीं की थी। अमित जैसे ही दिवाकर से मुंबई के जुहू बीच पर मिला, दिवाकर पर उसने आरोपों की झड़ियां लगा दी। पर दिवाकर खामोश रहकर उन आरोपों को सुनता रहा।
दिवाकर की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिलता देख अमित भी चुप हो गया। कुछ देर तक दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत नहीं हुई। माहौल बोझिल सा हो गया था। माहौल को बेहतर बनाने के लिए दिवाकर ने पहल की। दिवाकर ने अमित से कहा, यार, तुम्हारी समस्या क्या है ?

मुंबई की फिजा में जहर घुलने लगा था। कभी साथ-साथ खेलने, पढ़ने, मौज-मस्ती करने वाले मराठी और गैर-मराठी के बीच अब दरार पैदा होने लगी थी। कुछ स्वार्थी नेताओं की मुहिम रंग लाने लगी थी।

दिवाकर सिंह और अमित पटेल जैसे लंगोटिया यार की दोस्ती को भी नेताओं की मुहिम ने बदरंग कर दिया।
मुंबई के एक इलाके में दिवाकर सिंह और अमित पाटील साथ-साथ पले-बढ़े और अपने कैरियर की शुरुआत भी एक साथ ही की। दिवाकर सिंह आज भले ही मुंबईया कहलाते हों, लेकिन इनकी फैमिली कोई सौ साल पहले ही मुंबई में आकर बस गई थी। अमित पाटील तो खांटी मराठी ही हैं।

मराठी और गैर-मराठी मुद्दे की वजह से मुंबई और महाराष्ट्र के कई शहरों का माहौल बदल चुका है। मराठियों में गैर-मराठियों के खिलाफ यह कहकर घृणा पैदा कर रहे हैं कि गैर-मराठी उनके काम करने के अवसर को छीन रहे हैं। महाराष्ट्र के लोगों का हक मार रहे हैं। 

ऐसा नहीं है कि इस तरह का झगड़ा कोई आज शुरू हुआ है बल्कि तीस-चालीस सालों से रह रहकर ऐसी आग जलती रही है। दिवाकर और अमित भी कई बार इस तरह के तमाशों का गवाह बन चुके हैं लेकिन बचपना और जवानी की दहलीज पर कदम रखते वक्त तक उनमें आपस में कोई मनमुटाव नहीं हुआ था। वो इन तमाशों को भी आम झगड़ा की ही तरह देखते थे, लेकिन अब इनमें समझदारी बढ़ने लगी और कुछ नेताओं की मराठी और गैर-मराठी संबंधी बेलगाम टिप्पणियों ने उनमें भी खटास पैदा करना शुरू कर दिया।

दिवाकर भी कई बार मराठीविरोधी अभियान के शिकार हुए, हालांकि वो भी अच्छी मराठी बोल लेते हैं, पूरी तरह से मराठी संस्कृति में रचे-बसे हैं। दिवाकर ने अपने दर्द को अपने खासमखास दोस्त अमित के सामने बयान किया, लेकिन इस समय तक अमित में वो भावना जन्म ले चुकी थी जिसने कुछ मराठियों के मन में गैर-मराठी खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के बाशिंदों के खिलाफ जहर भर दिया था। अमित भी दिवाकर के दर्द पर मरहम नहीं
लगा सका। हालांकि अब तक दिवाकर भी इस बात को अच्छी तरह से जान चुका था कि इस मामले में अमित से उसे कोई राहत नहीं मिलने वाली है।

फिर भी उसने साहस करके अमित से एक सवाल जरूर पूछा…अच्छा अमित, ये बताओ…जब मुंबई में बिहार और दूसरे प्रांत के लोग आकर जीवन-बसर कर रहे हैं, नौकरियों कर रहे हैं तो फिर जो लोग मुंबई के रहने वाले है खांटी मराठी हैं, वो क्यों नहीं कर सकते….., क्यों कुछ नेता उनके लिए स्थानीय नौकरियों में 80 परसेंट तक आरक्षण की मांग करते रहते हैं। वो क्यों मराठियों में ये दुष्प्रचार करते रहते हैं कि बिहारियों के कारण उनके काम करने के अवसर खत्म होते जा रहे हैं…..

अमित कुछ पल चुप रहा….

लेकिन दिवाकर को इसका कोई जवाब नहीं मिला। पर, अब सवाल पूछने की बारी अमित की थी। अमित ने दिवाकर से पूछा… मैं तो तेरे सवाल का जवाब नहीं दे पाया, लेकिन मुझे तुमसे एक बात पूछनी है… दिवाकर ने कहा, पूछो..

अमित ने कहा, अच्छा दोस्त, ये बताओ, बिहारी के बारे में कहा जाता है कि वो काफी कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं, प्रतिभाशाली होते हैं, बिहार में प्राकृतिक संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है, फिर भी तुम लोग बिहार में काम क्यों नहीं करते, क्यों नहीं बिहार को एक ऐसा प्रदेश बना देते हो, ताकि बिहारी को बाहर जाने की नौबत न आए, दूसरे प्रांत के लोगों की गालियां और लाठियां नहीं खानी पड़े।

दिवाकर के पास भी अमित के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था…… और शायद किसी नेता के पास भी दोनों के सवालों का जवाब मिलना मुश्किल है… क्योंकि उन्हें मुद्दा चाहिए, इलेक्शन के लिए, सत्ता पाने के लिए… आम नागरिक की भावना से उन्हें क्या-लेना…खुद बंदुकधारियों की छांव में दिन-रात रहने वाले इन नेताओं से उम्मीद भी कोई क्या कर सकता है…….

 -Apno Ki Kaisi Khamosi: अपनों की कैसी खामोशी? (Kahani, कहानी)

-मानवरत्न, ना बाबा ना ! ( कहानी)

एक सड़क की सिसकियां   (कहानी)

एक राखी का दर्द (कहानी); Ek RakhI Ka Dard (Kahani)


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रविवार, 7 जनवरी 2024

एक राखी का दर्द (कहानी); Ek RakhI Ka Dard (Kahani)

बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है, 
प्यार के दो तार से संसार बांधा है...बाजार में, एफएम रेडियो पर, टीवी चैनलों पर इस गाने की जबर्दस्त धूम है। 



रक्षा बंधन के मौके पर ये गाना माहौल में मिश्री गोल रहा है। पूरा वातावरण ही भाई-बहना के प्यार में डूबा हुआ है। रक्षा बंधन का उत्साह जोरों पर है। रंग-बिरंगी राखियों से बाजार पटा है। 

बहना अपने भैया के लिए एक से बढ़कर एक खूबसूरत राखियां खरीद रही हैं वहीं भैया की कलाई भी बहना का प्यार को पाने के लिए बेताब है। 

भाई-बहना के इस प्यार के बीच एक राखी काफी उदास है। लोगों के जोशो और उत्साह के बीच वो राखी इस बात से उदास है कि उसकी इच्छा पूछने वाला कोई नहीं है। राखी इस बात को लेकर दुखी है कि बहना तो भैया की कलाई में  मुझे बांधकर उससे रक्षा करने का वादा ले लेगी जबकि भाई भी राखी बंधवाकर एक बार फिर सदियों से चले आ रहे परंपरा का निर्वाह कर लेगा, लेकिन मेरा दुख कौन समझेगा। 

राखी मन ही मन सोच रही है कि अगर मैं इंसान रहती तो मैं भी अनशन, हड़ताल करके अपनी मांग मनवा लेती लेकिन मेरा तो कोई वजूद ही नहीं है। राखी ये सब सोच ही रही थी कि उसके बगल में टंगी दूसरी राखी की नजर उस पर गई। 

दूसरी राखी से उस राखी की उदासी देखी नहीं गई। दूसरी राखी ने पूछा, बहना आज तुम उदास क्यों हो। तुमने तो खुश होना चाहिए। तुम भी आज किसी के भाई की कलाई की शोभा बनेगी। इसपर पहली वाली राखी ने कहा कि तुम मेरी तकलीफ, मेरा दर्द नहीं समझोगी। दूसरी वाली राखी ने पूछा, बताओ न, क्या हुआ। अपना दर्द अपनों को नहीं बताओगी, तो फिर किसे बताओगी। 

दूसरी राखी का इतना आश्वासन देना ता कि, पहली राखी का दर्द झट से बाहर आने लगा। सखी, सभी बहनें अपने भाइयों की कलाई पर मुझे बांधकर उनसे रक्षा का वादा लेती हैं, लेकिन आज बहनों पर इतना अत्याचार क्यूं। 

बदायूं में जिन दो बहनों का गैंगरेप कर उसकी हत्या कर पेड़ से लटका दिया, वो भी तो किसी भैया की बहना ही थी और बहना ने अपने भैया को राखी बांधकर उनसे रक्षा का वादा लिया होगा। फिर जब उसपर जुल्म हो रहा था, 
तो भैया कहां था। और जिन लोगों ने इसको अंजाम दिया, उसकी कलाई में भी किसी बहना ने तो राखी बांधी होगी, क्या उसे जरा भी राखी का ख्याल नहीं आया। तो जब भैया के मन में राखी की इज्जत ही नहीं है, तो फिर मैं कैसे न उदास रहूं। फिर मेरे बंधने, ना बंधने का मतलब क्या है। 

पहली राखी का दर्द बयान करना जारी रहा। उसने आगे कहा बाजार में, थाने में, स्कूल में, ट्रेन में, घर में,  दिल्ली में, बिहार में, मुंबई में, बेंगलुरू में, मेरठ में, हापुड़ में, कोलकाता में, उत्तर में, दक्षिण में, पूर्व में, पश्चिम में, चाहे अपने हो या गैर आज हर तरफ बहनों की अस्मत लूटी जा रही है। लेकिन अपनी बहनों की रक्षा  की कसम खाने वाले भैया
कहीं दिखाई ही नहीं देते हैं। भैया, या तो बहना की अस्मत लुटते हैं या फिर अस्मत लुटते हुए देखते हैं। इस पर भी कुछ भैया बच जाएं, तो वो बहना की इज्जत लुटने की खबरों को चटकारे ले लेकर सुनते और सुनाते हैं। पहली राखी
ने दूसरी से कहा, जरा सोचो सखी, क्या बहना इसी दिन के लिए भैया की कलाई में मुझे बांधती है। भैया भले ही अपनी बहना पर अत्याचार को सह ले, देख के भी मुकदर्शक बना रहे, लेकिन मुझसे तो ये सब ना देखा जाएगा, ना ही सुना जाएगा। 

सरेआम गैंगरेप और रेप कर बहनों की हत्या की जा रही है। 6 माह की मासूम हो, या फिर 70 साल की बुजुर्ग, भैया की हैवानियत से आज हर कोई डरी हुई है। हैवानियत ऐसी कि राक्षस भी सुनकर कांप जाए। जो भैया हैवानियत का खेल खेल रहे हैं, क्या उसकी बहना कभी पूछने की हिम्मत कर सकेगी, कि भैया काश, तुम मेरे प्यार की इज्जत रख लेते। क्या, ऐसी बहना अपने भैया का बहिष्कार करने की जुर्रत कर पाएगी। 

पहली राखी ने कहा, अब तुम्हीं बताओ सखी, ऐसे में मुझे दुख तो होगा न। भैया से जिस रक्षा की उम्मीद में बहना राखी बांधती है, जब वही उम्मीद पूरी ना हो, तो फिर कलाईयों में मेरे बंधने का क्या मतलब है। दूसरी राखी ने भी 
पहली राखी के हां में हां मिलायी और वो भी उदास हो गई। भला, कौन समझेगा, धागे के इस प्यार का, जबकि उनके लिए इंसानियत का ही कोई मोल ना हो। 

 -मानवरत्न, ना बाबा ना ! ( कहानी)

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