शुक्रवार, 1 मार्च 2024

Apno Ki Kaisi Khamosi: अपनों की कैसी खामोशी? (Kahani, कहानी)



अमित जैसे पक्के दोस्त के अचानक बदले व्यवहार ने दिवाकर को हिलाकर रख दिया था। दिवाकर ने अमित से ऐसी कटुतापूर्ण भाषा की उम्मीद तो क्या, सपने में भी कल्पना नहीं की थी। अमित जैसे ही दिवाकर से मुंबई के जुहू बीच पर मिला, दिवाकर पर उसने आरोपों की झड़ियां लगा दी। पर दिवाकर खामोश रहकर उन आरोपों को सुनता रहा।
दिवाकर की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिलता देख अमित भी चुप हो गया। कुछ देर तक दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत नहीं हुई। माहौल बोझिल सा हो गया था। माहौल को बेहतर बनाने के लिए दिवाकर ने पहल की। दिवाकर ने अमित से कहा, यार, तुम्हारी समस्या क्या है ?

मुंबई की फिजा में जहर घुलने लगा था। कभी साथ-साथ खेलने, पढ़ने, मौज-मस्ती करने वाले मराठी और गैर-मराठी के बीच अब दरार पैदा होने लगी थी। कुछ स्वार्थी नेताओं की मुहिम रंग लाने लगी थी।

दिवाकर सिंह और अमित पटेल जैसे लंगोटिया यार की दोस्ती को भी नेताओं की मुहिम ने बदरंग कर दिया।
मुंबई के एक इलाके में दिवाकर सिंह और अमित पाटील साथ-साथ पले-बढ़े और अपने कैरियर की शुरुआत भी एक साथ ही की। दिवाकर सिंह आज भले ही मुंबईया कहलाते हों, लेकिन इनकी फैमिली कोई सौ साल पहले ही मुंबई में आकर बस गई थी। अमित पाटील तो खांटी मराठी ही हैं।

मराठी और गैर-मराठी मुद्दे की वजह से मुंबई और महाराष्ट्र के कई शहरों का माहौल बदल चुका है। मराठियों में गैर-मराठियों के खिलाफ यह कहकर घृणा पैदा कर रहे हैं कि गैर-मराठी उनके काम करने के अवसर को छीन रहे हैं। महाराष्ट्र के लोगों का हक मार रहे हैं। 

ऐसा नहीं है कि इस तरह का झगड़ा कोई आज शुरू हुआ है बल्कि तीस-चालीस सालों से रह रहकर ऐसी आग जलती रही है। दिवाकर और अमित भी कई बार इस तरह के तमाशों का गवाह बन चुके हैं लेकिन बचपना और जवानी की दहलीज पर कदम रखते वक्त तक उनमें आपस में कोई मनमुटाव नहीं हुआ था। वो इन तमाशों को भी आम झगड़ा की ही तरह देखते थे, लेकिन अब इनमें समझदारी बढ़ने लगी और कुछ नेताओं की मराठी और गैर-मराठी संबंधी बेलगाम टिप्पणियों ने उनमें भी खटास पैदा करना शुरू कर दिया।

दिवाकर भी कई बार मराठीविरोधी अभियान के शिकार हुए, हालांकि वो भी अच्छी मराठी बोल लेते हैं, पूरी तरह से मराठी संस्कृति में रचे-बसे हैं। दिवाकर ने अपने दर्द को अपने खासमखास दोस्त अमित के सामने बयान किया, लेकिन इस समय तक अमित में वो भावना जन्म ले चुकी थी जिसने कुछ मराठियों के मन में गैर-मराठी खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के बाशिंदों के खिलाफ जहर भर दिया था। अमित भी दिवाकर के दर्द पर मरहम नहीं
लगा सका। हालांकि अब तक दिवाकर भी इस बात को अच्छी तरह से जान चुका था कि इस मामले में अमित से उसे कोई राहत नहीं मिलने वाली है।

फिर भी उसने साहस करके अमित से एक सवाल जरूर पूछा…अच्छा अमित, ये बताओ…जब मुंबई में बिहार और दूसरे प्रांत के लोग आकर जीवन-बसर कर रहे हैं, नौकरियों कर रहे हैं तो फिर जो लोग मुंबई के रहने वाले है खांटी मराठी हैं, वो क्यों नहीं कर सकते….., क्यों कुछ नेता उनके लिए स्थानीय नौकरियों में 80 परसेंट तक आरक्षण की मांग करते रहते हैं। वो क्यों मराठियों में ये दुष्प्रचार करते रहते हैं कि बिहारियों के कारण उनके काम करने के अवसर खत्म होते जा रहे हैं…..

अमित कुछ पल चुप रहा….

लेकिन दिवाकर को इसका कोई जवाब नहीं मिला। पर, अब सवाल पूछने की बारी अमित की थी। अमित ने दिवाकर से पूछा… मैं तो तेरे सवाल का जवाब नहीं दे पाया, लेकिन मुझे तुमसे एक बात पूछनी है… दिवाकर ने कहा, पूछो..

अमित ने कहा, अच्छा दोस्त, ये बताओ, बिहारी के बारे में कहा जाता है कि वो काफी कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं, प्रतिभाशाली होते हैं, बिहार में प्राकृतिक संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है, फिर भी तुम लोग बिहार में काम क्यों नहीं करते, क्यों नहीं बिहार को एक ऐसा प्रदेश बना देते हो, ताकि बिहारी को बाहर जाने की नौबत न आए, दूसरे प्रांत के लोगों की गालियां और लाठियां नहीं खानी पड़े।

दिवाकर के पास भी अमित के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था…… और शायद किसी नेता के पास भी दोनों के सवालों का जवाब मिलना मुश्किल है… क्योंकि उन्हें मुद्दा चाहिए, इलेक्शन के लिए, सत्ता पाने के लिए… आम नागरिक की भावना से उन्हें क्या-लेना…खुद बंदुकधारियों की छांव में दिन-रात रहने वाले इन नेताओं से उम्मीद भी कोई क्या कर सकता है…….

 -Apno Ki Kaisi Khamosi: अपनों की कैसी खामोशी? (Kahani, कहानी)

-मानवरत्न, ना बाबा ना ! ( कहानी)

एक सड़क की सिसकियां   (कहानी)

एक राखी का दर्द (कहानी); Ek RakhI Ka Dard (Kahani)


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रविवार, 7 जनवरी 2024

एक राखी का दर्द (कहानी); Ek RakhI Ka Dard (Kahani)

बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है, 
प्यार के दो तार से संसार बांधा है...बाजार में, एफएम रेडियो पर, टीवी चैनलों पर इस गाने की जबर्दस्त धूम है। 



रक्षा बंधन के मौके पर ये गाना माहौल में मिश्री गोल रहा है। पूरा वातावरण ही भाई-बहना के प्यार में डूबा हुआ है। रक्षा बंधन का उत्साह जोरों पर है। रंग-बिरंगी राखियों से बाजार पटा है। 

बहना अपने भैया के लिए एक से बढ़कर एक खूबसूरत राखियां खरीद रही हैं वहीं भैया की कलाई भी बहना का प्यार को पाने के लिए बेताब है। 

भाई-बहना के इस प्यार के बीच एक राखी काफी उदास है। लोगों के जोशो और उत्साह के बीच वो राखी इस बात से उदास है कि उसकी इच्छा पूछने वाला कोई नहीं है। राखी इस बात को लेकर दुखी है कि बहना तो भैया की कलाई में  मुझे बांधकर उससे रक्षा करने का वादा ले लेगी जबकि भाई भी राखी बंधवाकर एक बार फिर सदियों से चले आ रहे परंपरा का निर्वाह कर लेगा, लेकिन मेरा दुख कौन समझेगा। 

राखी मन ही मन सोच रही है कि अगर मैं इंसान रहती तो मैं भी अनशन, हड़ताल करके अपनी मांग मनवा लेती लेकिन मेरा तो कोई वजूद ही नहीं है। राखी ये सब सोच ही रही थी कि उसके बगल में टंगी दूसरी राखी की नजर उस पर गई। 

दूसरी राखी से उस राखी की उदासी देखी नहीं गई। दूसरी राखी ने पूछा, बहना आज तुम उदास क्यों हो। तुमने तो खुश होना चाहिए। तुम भी आज किसी के भाई की कलाई की शोभा बनेगी। इसपर पहली वाली राखी ने कहा कि तुम मेरी तकलीफ, मेरा दर्द नहीं समझोगी। दूसरी वाली राखी ने पूछा, बताओ न, क्या हुआ। अपना दर्द अपनों को नहीं बताओगी, तो फिर किसे बताओगी। 

दूसरी राखी का इतना आश्वासन देना ता कि, पहली राखी का दर्द झट से बाहर आने लगा। सखी, सभी बहनें अपने भाइयों की कलाई पर मुझे बांधकर उनसे रक्षा का वादा लेती हैं, लेकिन आज बहनों पर इतना अत्याचार क्यूं। 

बदायूं में जिन दो बहनों का गैंगरेप कर उसकी हत्या कर पेड़ से लटका दिया, वो भी तो किसी भैया की बहना ही थी और बहना ने अपने भैया को राखी बांधकर उनसे रक्षा का वादा लिया होगा। फिर जब उसपर जुल्म हो रहा था, 
तो भैया कहां था। और जिन लोगों ने इसको अंजाम दिया, उसकी कलाई में भी किसी बहना ने तो राखी बांधी होगी, क्या उसे जरा भी राखी का ख्याल नहीं आया। तो जब भैया के मन में राखी की इज्जत ही नहीं है, तो फिर मैं कैसे न उदास रहूं। फिर मेरे बंधने, ना बंधने का मतलब क्या है। 

पहली राखी का दर्द बयान करना जारी रहा। उसने आगे कहा बाजार में, थाने में, स्कूल में, ट्रेन में, घर में,  दिल्ली में, बिहार में, मुंबई में, बेंगलुरू में, मेरठ में, हापुड़ में, कोलकाता में, उत्तर में, दक्षिण में, पूर्व में, पश्चिम में, चाहे अपने हो या गैर आज हर तरफ बहनों की अस्मत लूटी जा रही है। लेकिन अपनी बहनों की रक्षा  की कसम खाने वाले भैया
कहीं दिखाई ही नहीं देते हैं। भैया, या तो बहना की अस्मत लुटते हैं या फिर अस्मत लुटते हुए देखते हैं। इस पर भी कुछ भैया बच जाएं, तो वो बहना की इज्जत लुटने की खबरों को चटकारे ले लेकर सुनते और सुनाते हैं। पहली राखी
ने दूसरी से कहा, जरा सोचो सखी, क्या बहना इसी दिन के लिए भैया की कलाई में मुझे बांधती है। भैया भले ही अपनी बहना पर अत्याचार को सह ले, देख के भी मुकदर्शक बना रहे, लेकिन मुझसे तो ये सब ना देखा जाएगा, ना ही सुना जाएगा। 

सरेआम गैंगरेप और रेप कर बहनों की हत्या की जा रही है। 6 माह की मासूम हो, या फिर 70 साल की बुजुर्ग, भैया की हैवानियत से आज हर कोई डरी हुई है। हैवानियत ऐसी कि राक्षस भी सुनकर कांप जाए। जो भैया हैवानियत का खेल खेल रहे हैं, क्या उसकी बहना कभी पूछने की हिम्मत कर सकेगी, कि भैया काश, तुम मेरे प्यार की इज्जत रख लेते। क्या, ऐसी बहना अपने भैया का बहिष्कार करने की जुर्रत कर पाएगी। 

पहली राखी ने कहा, अब तुम्हीं बताओ सखी, ऐसे में मुझे दुख तो होगा न। भैया से जिस रक्षा की उम्मीद में बहना राखी बांधती है, जब वही उम्मीद पूरी ना हो, तो फिर कलाईयों में मेरे बंधने का क्या मतलब है। दूसरी राखी ने भी 
पहली राखी के हां में हां मिलायी और वो भी उदास हो गई। भला, कौन समझेगा, धागे के इस प्यार का, जबकि उनके लिए इंसानियत का ही कोई मोल ना हो। 

 -मानवरत्न, ना बाबा ना ! ( कहानी)

एक सड़क की सिसकियां   (कहानी)

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शनिवार, 6 जनवरी 2024

एक सड़क की सिसकियां (कहानी); Ek Sadak Ki Siskiyan (Kahani)


 मैं सुनसान हूं, मुझे गम नहीं। मैं उबड़-खाबड़ हूं, मुझे दिक्कत नहीं। मेरी हालत खराब है, मुझे कोई तकलीफ नहीं है। हमसे होकर काफी कम लोग गुजरते हैं, इससे भी मुझे कोई परेशानी नहीं है। मुंबई से सटे नालासोपारा के स्टेशन रोड से ये बातें उसके बगल वाली सड़क बता रही थी। सड़क ठीक हालत में नहीं थी और लोग भी इसका कम ही इस्तेमाल करते थे। 


स्टेशन रोड उस सड़क की बातें काफी गौर से सुन रहा था और जब उसने अपनी बात खत्म की तो स्टेशन रोड अचानक किसी गम में डूब गया। स्टेशन रोड को ऐसा देखकर बगल वाली सड़क को अच्छा नहीं लगा। उसे लगा कि उसकी वजह से स्टेशन रोड को कोई चोट पहुंची है। 

दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी रही। थोड़ी देर के बाद बगल वाली सड़क ने फिर से बातचीत की पहल की। उसने स्टेशन रोड से पूछा, क्या उसकी बातों से कोई तकलीफ पहुंची है। स्टेशन रोड ने ना में सर हिलाया। तो, फिर अचानक क्या हुआ। 

स्टेशन रोड ने फिर अपने मन की बात बगल वाली सड़क से कहना शुरू किया। स्टेशन रोड ने कहा कि कुछ समय पहले तक मेरी हालत भी तुम्हारी जैसी ही थी। लोग तो हमारा काफी इस्तेमाल करते थे लेकिन नगर निगम की अनदेखी की वजह से मैं बदहाली से जूझ रहा था। 

मेरे किनारे पर सीवर उफना रहे होते थे और मैं खुद उबड़-खाबड़ थी। नालियां खुली होने के कारण बरसात में मुझे जलभराव का भी सामना करना पड़ता था। बरसात में लोगों को आने-जाने में तकलीफ होती थी। कूड़ाघर न होने की वजह से मेरे ऊपर ही लोग कूड़ा फेंक दिया करते थे। इतना ही नहीं लाइट व्यवस्था न होने की वजह से शाम होते ही लोगों का निकलना मुश्किल होता था। 

स्टेशन रोड ने आगे कहा कि कुछ समय के बाद हमारी हालत ठीक हुई। प्रशासन की नजर हमारी बदहाली पर गई। लोगों को भी हमारी हालत ठीक कराने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। ऊपर से चुनाव सर पर था तो नेताजी को भी कुछ काम करके दिखाना था। 

इन सबसे हमारी हालत ठीक हुई। हमारी मरम्मत की गई। मेरा पक्कीकरण किया गया। मुझे चौड़ा किया गया। सीवर व्यवस्था को ठीक किया गया। स्ट्रीट लाइट लगाए गए। साफ-सफाई का पक्का इंतजाम किया गया। सारे गड्ढे भर दिए गए। पर्यावरण और हरियाली का ध्यान रख कर मेरे किनारे पेड़-पौधे भी लगाए गए। 

स्टेशन रोड ने अपने बगल वाली सड़क से कहा कि ये सब देखकर मैं काफी खुश हुआ। मैं खासा उत्साहित था कि अब तो लोग जब भी हमसे होकर गुजरेंगे तो उनको कोई तकलीफ नहीं होगी। लेकिन, मेरी ये खुश कुछ ही समय तक रही, क्योंकि कुछ समय के बाद गणपति का शहर में आगमन होने वाला था। 

लोगों में बाप्पा के स्वागत को लेकर काफी जोश था। लोगों की इसी जोश ने हमारा बुरा हाल कर दिया। बाप्पा को प्रतिष्ठित करने के लिए मुझे जगह-जगह खोद डाला । मेरे बदन पर कई जख्म किये गए। हद तो तब हो गई जब बाप्पा के विसर्जन के बाद भी मेरी मरहम-पट्टी नहीं की गई।  

ये सिलसिला गणेश चतुर्थी तक ही सीमित नहीं रहा। कोई भी त्योहार हो, किसी भी नेता का आगमन हो, होलिका दहन करना हो, हर बार हमारा कलेजा छलनी किया जाता है। सबसे दुख की बात तो ये है कि जो लोग मुझे छलनी करते हैं वही लोग सरकार, नेता, मंत्री, प्रशासन को गाली भी देते हैं कि वो सड़क ठीक क्यों नहीं करते।  

स्टेशन रोड ने कहा मुझे जख्मी होने का ज्यादा दुख नहीं है बल्कि मैं ये देखकर ज्यादा दुखी हूं कि जिन लोगों को मेरे ऊपर चलना है, वो ही मुझे जगह-जगह खोद डालते हैं। 

आखिर में स्टेशन रोड ने दर्द भरे लफ्जों में कहा भगवान इनको सद्बुद्धि देना। 


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एक सड़क की सिसकियां   (कहानी)

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रविवार, 31 दिसंबर 2023

मानवरत्न, ना बाबा ना ! ( कहानी); ManavRatna, Na Baba Na (Kahani)

"नहीं, नहीं, उसका नाम मानवरत्न मत करो, उसका नाम जंगलरत्न ही रहने दो, मुझे जगलरत्न कहने पर अब कोई आपत्ति नहीं है।" जीवन वन में भरी 

सभा में रामू भेड़िये ने अली शेर से ये अपील की। दरअसल, जीवन वन में अच्छे कामों के लिए दिये जाने वाले सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार का नाम बदले जाने पर  विचार-विमर्श चल रहा था। सबसे अच्छे काम करने वाले जानवर को हर साल जंगलरत्न से नवाजा जाता है। जीवन वन में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। यह पुरस्कार जंगल का राजा देता है। इस समय जंगल का राजा अली शेर है। 

अली शेर, ' यार, रामू तुम ही तो लंबे समय से जंगलरत्न का नाम बदलकर मानवरत्न करने की मांग कर रहे हो, लेकिन अब जब नाम बदलकर मानवरत्न की जा रही है, तो तुम उसका विरोध भी कर रहे हो। बात क्या है। सच-सच बताओ।'  

रामू, अली शेर से ' बॉस, अभी मैं शहर से होकर आ रहा हूं। मैं पहली बार शहर गया था। इससे पहले मैं इंसान और उनकी बस्तियों से अंजान था। वे क्या काम करते हैं, कैसे रहते हैं, उनकी दिनचर्या क्या होती है, उनका खान-पान, रहना-घूमना, हाव-भाव, उनके आपसी रिश्ते बगैरह कैसे रहते हैं, ये सब मैंने कभी जाना ही नहीं था।'

अली शेर ने रामू से पूछा, शहर में तुमने ऐसा क्या देख लिया कि तुम्हें जंगलरत्न का नाम बदलकर मानवरत्न किए जाने  पर आपत्ति होने लगी। रामू ने कहा, दादा, ये मत पूछो। अगर इंसानों की हरकत की बात आपको बताने लगूंगा ना, तो आप भी उनसे नफरत करने लगेगो। इंसान सिर्फ कहने के लिए इंसान है, सभ्य हैं, आधुनिक हैं, अच्छा खाते हैं, अच्छा पहनते हैं, अच्छी जगहों में रहते हैं, कार-जहाज-ट्रेन-गाड़ी बगैरह से आते-जाते हैं लेकिन उनकी असली सूरत आप जान जाओगे ना, तो आप भी कहोगे, यार, हमलोगों के पुरस्कार का नाम जंगलरत्न ही सही है। 

रामू, खुलकर बोल यार, बुझव्वल मत बुझाओ, अली शेर ने रामू भेड़िया से कहा। सभा में बाकी सारे जानवर अली शेर और रामू भेड़िया की बातचीत गौर से सुन रहे हैं।  अली शेर की हां में हां मिलाते हुए सभी जानवरों ने रामू भेड़िया से इंसानों के बारे में विस्तार से बताने को कहा। रामू शहर से वापस आते समय अखबारों का पूरा बंडल साथ में लाया था। अखबारों की चुनिंदा खबरों को रामू ने एक-एक कर पढ़ना शुरू किया। 

'43200 बार रेप की शिकार हुई एक लड़की की खौफनाक दास्तान'
'जूस में नशा मिलाकर मंगेतर के साथ गैंगरेप'
'दरोगा पर लगा अगवा लड़की को बंधक बनाकर रेप करने का आरोप' 
'55 साल के रंगरेज ने बेटी की सहेली से किया रेप'
'एक दगाबाज दोस्त ने अपनी पत्नी की मदद से साजिश रचकर अपने ही दोस्त की पत्नी से बलात्कार किया'
'महिला को ट्रेन में अकेला देख दो दरिंदों ने खेला घिनौना खेल' 
'ऑपरेशन थिएटर में महिला से डॉक्टर ने किया रेप' 
'कक्षा 9 की छात्रा के साथ हुआ सामूहिक दुष्कर्म'
'कक्षा 11वीं की छात्रा के साथ दो युवकों ने किया सामूहिक दुष्कर्म'
'नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म, बनाया वीडियो'
'चलती बोलेरो में नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म'
'माता-पिता के सामने दो बेटियों का सामूहिक बलात्कार'

रामू भेड़िया आगे बढ़ता, इससे पहले सभा में बैठे श्याम चीता चिल्लाया, अबे...रामू...ये तुम क्या बक रहे हो? रामू, ये है इंसानों की नियत। बहन, बेटियों, मासूम की कोई इज्जत ही नहीं है। भले ही हम भेड़िया हैं, लेकिन हम भी अपनी मां, बहन, बेटियों के प्रति इस तरह का नजरिया नहीं रखते हैं। आप ही बताओ श्याम चीता तुमने जंगल में कभी किसी का बलात्कार किया है या फिर तुम अपने कई दोस्तों के साथ किसी का गैंगरेप किया है? तुम तो कर सकते हो, ताकतवर हो, जिसको चाहो उसके साथ तुम रेप कर सकते हो, लेकिन तुमने कभी किया है, क्या ? श्याम भी राम के सवालों पर खामोश हो गया। श्याम ने बस इतना ही कहा, अरे यार, हम जानवर भले ही हैं, लेकिन इंसानों से ज्यादा इंसानियत तो हममें है। ईश्वर ने चुकि हमें जानवर बनाया है और उस पर हम सिर्फ मांस पर ही जिंदा रह सकते हैं। इसलिए, जब भूख लगती है तभी किसी जानवर का शिकार करते हैं। रामू ने श्याम से पूछा, अब तुम्हारी बातें पूरी हो गई ना। श्याम ने हां में सिर हिलाया। 

राम फिर अगली खबर की तरफ बढ़ा। बलात्कार से जुड़ी खबर के बाद अब वो दंगे, आपसी रंजिश में हत्या, नरसंहार, नक्सली हिंसा, आतंकवादी हमले के संबंध में खबर पढ़ने लगा। 

'सन 1946 में कलकत्ता में हुए इन दंगों में 4,000 लोगों ने अपनी जानें गंवाई थी, और 10,000 से भी ज़्यादा लोग घायल हुए थे'
'31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की मौत के बाद भड़के दंगे में 800 से ज़्यादा सिखों की हत्या हुई थी'
'1986 में हुए कश्मीर दंगे में 1000 से भी ज़्यादा लोगों की जानें गयी थीं' 
'वाराणसी में 1989, 1990 और 1992 में हुए भयंकर दंगे में कई लोगों की जानें गईं और कई लोग बेघर हुए'
'अक्टूबर 1989 के भागलपुर दंगे में करीब 1000 से ज़्यादा निर्दोषों को अपनी जानें गंवानी पड़ी'
'1992 के मुंबई दंगे में करीब सैकड़ों लोगों की जानें गईं'
'2002 के गुजरात दंगे में करीब 2000 लोगों की जानें गईं और लाखों लोग बेघर हुए'
'2006 के अलीगढ़ दंगे में 6-7 लोगों की जानें गईं'
'2012 के असम दंगा में करीब 80 लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हुए'
'2013 के मुजफ्फरपुर दंगे में करीब 48 लोगों की जानें गईं और 93 लोग घायल हुए'

रामू भेड़िया अब जाति के नाम पर हुए हत्या को लेकर खबर पढ़ने ही वाला था कि अली शेर की जोरदार आवाज से वो चौंक गया। क्या हुआ दादा, रामू ने अली से कहा। अरे, पगले अब बस कर। इंसानों की हैवानियत के बारे में सुनकर अब मेरे आंखों से आंसू निकलने लगे हैं। इंसान ऐसा कर सकते हैं, इसका मुझे जरा भी इल्म नहीं था, अली ने रामू से कहा। 

रामू ने अली से कहा, दादा, आप जीवन वन के राजा हैं। आप जब भी चाहें हममें से किसी को भी मार सकते हैं, लेकिन आप ऐसा नहीं करते। आपको जब भूख लगती है तभी हममें से कोई आपका शिकार बनता है। और इंसान को देखिये, वो इंसान को ही मारने के लिए ना जाने क्या-क्या कर रहा है। परमाणु बम बना रहा है, आधुनिक से आधुनिकतम हथियार बना रहा है और ना जाने क्या -क्या। 

अली शेर, सही कहा रे, तू रामू। हम जानवर ही ठीक हैं। हमें ना तो इंसान बनने की जरूरत है और ना हीं अपने सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार जंगलरत्न का नाम बदलकर मानवरत्न करने की जरूरत है। सभा में मौजूद सभी जानवरों ने अली शेर की हां में हां मिलाई और सब अपने-अपने ठिकानों की तरफ चल दिए। 
                  
 

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शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

Waterlogging Everywhere: ऊंची बिल्डिंग, महंगी कार, सब बेकार...

Waterlogging Everywhery बारिश के दिनों में भारतीय शहरों चाहे वह दिल्ली, मुबंई, कोलकाता, बैंगलुरू हो या फिर छोटे शहर, हर जगह के लोगों को भारी जलजमाव की समस्या से मुक्ति का इंतजार रहता है।




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